रायपुर : पिछले 25 सालों से रायपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के नाम तरह-तरह के छल प्रपंच किया गया. इसका एक फायदा यह हुआ कि रायपुर भले ही स्मार्ट न हुआ हो लेकिन अधिकारियों औऱ सत्तादारी काबिज पार्टी की छवि जरूर स्मा्र्ट हो गई। स्मार्ट सिटी के नाम पर लूट की छूट का फायदा अधिकारियों ने भऱपूर उठाया । स्मार्ट सिटी द्वारा निर्मित स्मार्ट शौचालय जो रायपुर शहर में कबाड़ बन चुके थे और जिसकी खबर को प्रमुखता के साथ chhattisgarh.co प्रकाशित किया था। स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने एक और नया कारनामा कर दिखाया । जनता के करोड़ों रूपए से निर्मित स्मार्ट शौचालय को पहले तो निर्माण गैर जरूरी तरीके निर्माण किया अब उसके उपरांत उसको मेंटेन नहीं किया । मेंटेन करने के नाम पर किसी प्रकार के कोई रखरखाव के लिए न तो स्टाफ रखा न केयरटेकर की नियुक्ति की गई जिसकी वजह से करोड़ों रुपए के शौचालय रायपुर शहर में कबाड़ बन गए। अब स्मार्ट सिटी का नया करनामा सभी स्मार्ट शौचालय को टीना और ग्रिल लगाकर सील पैक कर दिया गया। अब सवाल उठता है कि जब इसका उपयोग होना ही नहीं था और तो इसका निर्णाण क्यों किय़ा गया। क्या सरकारी धन को इसी तरह बर्बाद करना स्मार्ट सिटी का आइडिया है। स्मार्ट का उपयोग जनता नहीं कर सकती ये कैसा स्मार्टनेस है।
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रायपुर की जनता को स्मार्ट सुविधा देने के नाम पर करोड़ रूपया खर्च हो गया औऱ जनता उसका उपयोग न करें तो इस सुविधा का क्या औचित्य था। अधिकािरयों ने अपनी मनमानी का जो हठधर्मिता दिखाया उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।इस तरह के स्मार्ट शौचालय का क्या औचित्य था करोड़ों रुपए बर्बाद हो गए शौचालय सील पैक कर दिया गया।अरबों रुपए खर्च कर राजधानी रायपुर को स्मार्ट टायलेट बनाने की कवायद भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया, जिसे छुपाने के लिए अब शहर में सार्वजनिक स्थलों में बनाए गए स्मार्ट टायलेट में खामियों के चलते उसे बंद कर दिया गया है। जनता के पैसों का किस तरह बर्बाद करते है इसका नमूना रायपुर में बनाए गए स्मार्ट टायलेट को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। निगम में अरबों रुपए के फंड को देखकर स्मार्ट सिटी नामक कंपनी बनाकर स्मार्ट काम सडक़ गार्डन, तालाब के स्कूल के सौंदर्यीकरण के साथ जनता को सुविधा देने के नाम पर पांच साल तक लूट मचाया। अब निगम में सत्ता बदलने के साथ अपने काले कारनामे छुपाने के लिए सारे स्मार्ट शौचालय को बंद कर सुनियोजित पर्दा डाल दिया है ताकि कोई इस मामले को मुद्दा न बना सके और अधिकारियों के काले कारनामे हमेशा के लिए दफन हो जाए।
इस मामले में केंद्र सरकार, नगर निगम और मुख्यमंत्री कार्यालय संज्ञान में लेकर उचित कार्रवाई करना चाहिए। तत्कालीन स्मार्ट सिटी के अधिकारी और तत्कालीन महापौर के खिलाफ अमानत में यानत का मामला जनता के पैसे की बर्बादी का मामला पहली नजर में बनता है। आवश्यक हुआ तो उच्च स्तरीय जांच करना भी जरूरी है । तत्कालीन महापौर ने स्मार्ट सिटी के अधिकारियों के साथ मिलकर इतना बड़ा कारनामा कर करोड़ की लूट जनता के पैसे की कर डाली। स्मार्ट सिटी के नाम पर कहीं पर भी शौचालय का निर्माण बिना सोचे समझे सिर्फ निगम के पैसों को वाट लगाने का तरीका अपनाया। ताकि जल्द से जल्द स्मार्ट सिटी के अधिकारी और तत्कालीन भ्रष्ट महापौर को तत्काल ठेकेदार से कमीशन मिल सके । अनाप-शनाप कहीं भी स्मार्ट सिटी की योजनाओं के नाम पर पैसा बर्बाद किया गया। इसका जीता जागता उदाहरण के स्मार्ट शौचालय जो सील पैक होकर बंद पड़े है। आखिर बंद करने का निर्णय किसने लिया क्या वर्तमान एमआईसी ने लिया या फिर पूर्व में तत्कालीन एमआईसी का निर्णय था। इसकी भा जांच होनी चाहिए तािक जनता को पता लगे कि जिसको हमने शहर की चाबी सौंपी वही लुटेरा निकला ।
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