सरगुजा : लोक त्योहारों के श्रृंखला में करमा त्योहार का विशेष महत्व रहा है। नगर लखनपुर सहित आसपास ग्रामीण इलाकों में करमा त्योहार 3 सितंबर दिन बुधवार को धूमधाम से मनाई गई। सदियों पुरानी चली आ रही परंपरा को कायम रखते हुये महिला एवं क्वारी कन्याओं ने दिन भर निर्जला उपवास रख कर करम देव के पूजा अर्चना किये ।ग्राम बैगा तथा पंडित पुजारियों के मुखारविंद से करम देव का कहानी सुना। एक दौर था जब प्राचीन रियासत काल में पुरुष महिलाएं लखनपुर राजमहल के सामने एकत्रित हो करम डाल के इर्द-गिर्द बैठकर ग्राम बैगा से करम देव के किस्सा सुना करते थे प्रथा आज भी चलन में है। कालांतर में यह प्रथा कुछ धूमिल होता जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने एक जुट होकर करमा त्योहार मनाया। पारम्परिक भेष भूषा में सजे धजे मांदर के थाप पर थिरकते हुए जमकर करमा नृत्य किया।
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धार्मिक मान्यतानुसार करमा त्योहार भाद्र मास के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाई जाती है । इसे पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। करमा त्योहार प्रकृति पूजा का एक अभिन्न हिस्सा है। दरअसल इस दिन जंगल से करम डाल लाकर बीच आंगन में गाड़ कर महिला पुरुष एकजुट श्रद्धा भक्ति के साथ ग्राम बैगा से कथा सुनते हैं तथा पूरी रात जागकर करमा नृत्य करते हैं। इस रस्म को बखूबी निभाया गया।कहा जाता है करम देव की पूजा अर्चना करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है तथा सभी प्रकार के इच्छित मनोकामनाएं पूरी होती है। लिहाजा क्षेत्र में करमा त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। आदिवासी बाहुल्य इलाकों मेंकरमा त्योहार दिल से मनाया जाता है खाने खिलाने तथा पीने पिलाने का भी दौर चलता है। यह सिलसिला शुरू हो गया है जो आने वाले सप्ताह भर तक चलता रहेगा।



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