नक्सल प्रभावित कांकेर में दुर्गुकोंदल से इरपानार तक की सड़क, जिसे 148 करोड़ रुपये की लागत में बनाया गया था, अब सिर्फ गड्ढों का नक्शा बन गई है. हर 100 मीटर पर 10-10 गड्ढे, और इन गड्ढों के बीच गुजरना ग्रामीणों के लिए रोज़मर्रा की साहसिक परीक्षा बन गई है.
स्टेट हाइवे 25, परलकोट के 300 से अधिक गांवों के लाखों लोगों को राजधानी रायपुर से जोड़ती है. इसकी वजह से पखांजुर से कांकेर तक 4-5 घंटे का सफर अब और लंबा हो गया है. गंभीर मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाना जैसे जीवन और मौत की दौड़ बन गया है.
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यहां 2012 में सड़क बनाने का काम शुरू हुआ, खर्च किए गए 148 करोड़ रुपये. लेकिन 2018 तक केवल 89 किलोमीटर सड़क ही बन पाई. लेकिन असली कहानी तो इसके बाद शुरु हुई है और वो है मरम्मत की कहानी. 4 साल में 3 करोड़ रुपये सिर्फ मरम्मत पर खर्च कर दिए गए, और परिणाम? वही गड्ढों का जाल. साल दर साल खर्च और गड्ढे बढ़ते गए.
किस साल कितने का पैचवर्क
करोड़ों रुपये उड़ गए, जबकि सड़क की हालत वही रही या शायद और बदतर. ''करोड़ों खर्च करने के बाद भी हमारी मुश्किलें कम नहीं हुई. सड़क पर गड्ढों के बीच चलना अब किसी साहसिक चुनौती से कम नहीं." वहीं एक और ग्रामीण हरपाल सिंह कहते हैं- "हम रोज़ हादसों के डर के साथ चलते हैं. विभाग कहता है मरम्मत हो रही है, लेकिन हमारी आंखों के सामने गड्ढे बढ़ते जा रहे हैं."
दूसरी तरफ ग्रामीणों की शिकायत पर SDO-PWD उप संभाग पखांजूर, विजय कुमार बांगड़ कहते हैं- "हम सुधार की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सड़क की स्थिति और खर्च के बीच संतुलन बनाए रखना आसान नहीं है" ऐसे में सवाल उठता है, जब करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं तब भी सड़क इतनी खस्ताहाल कैसे है? क्या यह सिस्टम की लापरवाही है, या सिर्फ दिखावे की मरम्मत? क्या यह सड़क कभी सुरक्षित, पक्की और चलने योग्य होगी, या सिर्फ सरकारी रिकॉर्ड में 'मरम्मत हुई' लिखने के लिए बनी है? यह सड़क सिर्फ गांवों को नहीं जोड़ती, यह सवालों, उम्मीदों और निराशा को भी जोड़ती है. हर गड्ढा, हर टूटी सड़क की पट्टी उन सवालों की गवाही है, जो हर गुजरते राहगीर के मन में उठते हैं. "हमारे कराए गए खर्च का असली फायदा हमें कब मिलेगा? क्या हमारे रुपये सिर्फ गड्ढों में ही समा गए हैं?"
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