किरंदुल, छत्तीसगढ़ : सामाजिक न्याय और श्रमिक अधिकारों की लड़ाई में एक नया अध्याय जुड़ गया है। प्रवेश कुमार जोशी, एक संवेदनशील और सक्रिय समाज-सेवी, ने ठेका श्रमिकों की पीड़ा को देश के सर्वोच्च कार्यालय तक पहुँचाने के लिए तीन प्रभावशाली पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे हैं। इन पत्रों में उन्होंने महिला ठेका श्रमिकों के लिए सवेतन मातृत्व अवकाश, बाबा साहेब आंबेडकर जयंती पर वेतन भुगतान, और श्रमिकों के साथ हो रहे असमान व्यवहार पर गहन चिंता जताई है।
पहला पत्र,मातृत्व के अधिकार की माँग, दिनांक 4 अगस्त 2025 को भेजे गए पहले पत्र में प्रवेश जोशी ने महिला ठेका श्रमिकों को सवेतन मातृत्व अवकाश देने की माँग की। उन्होंने लिखा कि मातृत्व एक संवेदनशील और जीवन-निर्धारक अवस्था है, जिसमें वित्तीय सुरक्षा और सम्मान हर महिला का अधिकार होना चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अक्टूबर में जब ठेका श्रमिकों की नई वेतन दरें घोषित हों, उसी समय मातृत्व अवकाश का प्रावधान भी राजपत्र में शामिल किया जाए।
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दूसरा पत्र,आंबेडकर जयंती पर वेतन कटौती का विरोध, 13 सितम्बर को भेजे गए दूसरे पत्र में उन्होंने डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर की जयंती पर ठेका श्रमिकों को वेतन न दिए जाने की प्रथा को असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण बताया। उन्होंने आग्रह किया कि इस दिन सभी श्रमिकों को नियमित कर्मचारियों की तरह वेतन मिले और भविष्य में किसी भी राष्ट्रीय अवकाश पर वेतन कटौती न की जाए।
तीसरा पत्र,श्रमिक न्याय के लिए संवैधानिक हस्तक्षेप, इसी दिन भेजे गए तीसरे पत्र में उन्होंने श्रम मंत्रालय के अधीनस्थ अधिकारी को संबोधित करते हुए अनुरोध किया कि आंबेडकर जयंती पर वेतन भुगतान संबंधी पत्र को गंभीरता से लिया जाए और आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए जाएँ। यह पत्र अब अंडर प्रोसेस की स्थिति में है।
प्रवेश जोशी का यह प्रयास केवल एक शिकायत नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतना है। यह उन लाखों श्रमिकों की आवाज़ है जो देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं, परंतु अधिकारों से वंचित रहते हैं। उनके पत्रों में संवैधानिक मूल्यों, आर्थिक तर्कों और मानवीय दृष्टिकोण का अद्भुत समावेश है।
यदि इन पत्रों पर सकारात्मक निर्णय लिए जाते हैं, तो यह न केवल ठेका श्रमिकों के जीवन में बदलाव लाएगा, बल्कि भारत को सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम आगे बढ़ाएगा।
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