सितंबर का आखिरी और अक्टूबर का पहला सप्ताह मटर की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस समय किसान भाई अगर मटर की अगेती किस्में बोते हैं, तो 60 से 65 दिनों में ही फसल तैयार हो जाएगी. इससे किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं और अगली फसल भी समय पर ले सकते हैं.
मध्य प्रदेश के खरगोन, खंडवा, बड़वानी सहित आसपास के जिलों में जहां सोयाबीन, मूंग, उड़द और मक्का की फसल की कटाई पूरी हो चुकी है या होने वाली है. वहां अब किसान मटर की बुवाई की तैयारी कर रहे हैं. कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समय अगेती किस्मों के लिए सबसे उपयुक्त है.
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मटर की आर्किल, जवाहर मटर-3, पंत मटर-2, पीएसएम-5, काशीनंदिनी और काशी अगेती जैसी किस्में जल्दी तैयार हो जाती हैं. इनकी तुड़ाई 60–65 दिनों में की जा सकती है, जिससे किसान नवंबर–दिसंबर में ही ताजी मटर बाजार में बेचकर ज्यादा दाम पा सकते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसान मध्य और देर से पकने वाली मटर की किस्मों की खेती करना चाहते हैं, तो उनकी बुवाई अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक करनी चाहिए. इससे उनकी पैदावार और क्वालिटी दोनों अच्छी मिलती है.
जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए बीज दर 100–120 किलो प्रति हेक्टेयर और मध्य/देर वाली किस्मों के लिए 80–90 किलो प्रति हेक्टेयर रखी जानी चाहिए. सही बीज दर रखने से पौधों की संख्या संतुलित रहती है और उत्पादन अच्छा मिलता है.
बुवाई से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम + मैन्कोजेब (दो ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करना चाहिए. इसके बाद राइजोबियम कल्चर (10 ग्राम प्रति किलो बीज) का प्रयोग करें. इससे पौधों की जड़ों में गांठें अच्छी बनती हैं और नाइट्रोजन स्थिरीकरण होता है.
फसल से बेहतर पैदावार लेने के लिए अंतिम जुताई में खेत में 15–20 टन सड़ी गोबर की खाद डालें. वहीं बुवाई के समय 40 किलो यूरिया, 375 किलो सिंगल सुपर फास्फेट और 50 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए.
मटर की बुवाई के तुरंत बाद खेत में खरपतवार नियंत्रण जरूरी है. इसके लिए किसान भाई पेंडामिथलीन 30 ईसी (3.33 लीटर प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव करें. इससे शुरुआती दिनों में खरपतवार दब जाते हैं और फसल पर उनका असर नहीं पड़ता.
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अगेती किस्मों की बुवाई से किसान कम समय में फसल बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं. साथ ही खेत समय पर खाली हो जाता है, जिससे वे अगली फसल गेहूं या चना की बुवाई भी आसानी से कर पाते हैं. ध्यान रहे कि खेत का जल निकास अच्छा हो क्योंकि जलभराव की स्थिति में पौधे जल्दी खराब हो जाते हैं.
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