सरगुजा : सनातन हिन्दू धर्म में जिवितपुत्रिका व्रत का विशेष महत्व आदि काल से रहा है। यह पर्व संतान के प्रति प्रेम और त्याग का प्रतीक है। माताएं अपने बच्चों के लम्बी उम्र स्वास्थ्य समृद्धि के लिए यह व्रत पूरी श्रद्धा के साथ करती है। पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग में महर्षि धौम्य के बताये अनुसार महारानी द्रौपदी ने संतानों के लम्बी उम्र की कामना से पुरवासी महिलाओं के साथ इस व्रत को किया था।
तब से जिवितपुत्रिका व्रत मनाये जाने का चलन संसार में आरंभ होना मानी जाती है। जिवित पुत्रिका व्रत कथा में इसका वर्णन मिलता है।
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यह त्योहार इसलिए भी खास है । मां अपने संतानों के सुरक्षा अनिष्ट कारी बाधाओं को दूर करने दीर्घायु होने की कामना तथा सबकी सुख समृद्धि के कामना से यह व्रत करती है।प्रत्येक वर्ष अश्विनी क्वांर महिने के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को यह त्योहार मनाई जाती है इसे प्रकृति पूजा से भी जोड़कर देखा जाता है व्रती माताएं पेड़-पौधे , पशु पक्षियों के अलावा अपने ओलांद के प्रति हृदय में दया ममता का भाव रखते हुए इस व्रत को शिद्दत के साथ करती हैं। यह पर्व मां के अथाह ममता का परिचायक है। माताए निराहार रह कर जंगल से चिलही पेड़ की डगाल लाकर कुश निर्मित जिमुतवाहन की प्रतिमा बनाकर सोने चांदी अथवा रेशमी धागों से बने जिवतिया पूजा स्थल में स्थापित कर विधिवत पूजा करती एवं कथा सुनती है।इस तरह से 36 घंटे की कठोर निर्जला उपवास रखती है। धार्मिक नियमों को मानते हुए नौवमी तिथि को व्रत तोड़ कर पारण करती है। तथा गले में जिवितिया धारण करती है।
इस धार्मिक परम्परा को कायम रखते हुए नगर लखनपुर सहित आसपास के ग्रामीण इलाकों में जिवित पुत्रिका त्योहार 14 सितंबर दिन रविवार को उमंग के साथ मनाई गई । माताओं ने शनिवार को 12 घंटे का ओठगन छोटी उपवास रखें ।शाम को नहाय खाय के बाद रविवार को 24 घंटे का बडी उपवास रखा नीज घरों तथा मंदिरों में पूजा करने उपरांत जिमुतवाहन चिलही सियारनी के कथा सुने नियत तिथि सोमवार को व्रत तोड़ कर पारण किया।इस तरह से 36 घंटे तक किया जाने वाला जिवित पुत्रिका व्रत का सफर सम्पन्न हुआ। जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में जिवितिया मनाये जाने का अपना -अलग ही अंदाज है इस रोज करमा नृत्य का आयोजन होता है जिसमें महिला पुरुष युवा एकजुट होकर मांदर के थाप पर जमकर थिरकते हैं। इस चलन को बरकरार रखते हुए करमा नृत्य किया गया। इस त्योहार की यह भी खासियत रही है कि पारण के बाद पीने पिलाने का दौर भी चलता है। इस रिवाज़ को भी लोगों ने बखूबी निभाया। ग्रामीण क्षेत्रों में जिवितिया त्योहार मनाये जाने का सिलसिला सप्ताह भर तक यूं चलता रहेगा।
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