चिकन से भी महंगी बिकने वाली ये देसी सब्जी, जानिए खेती का आसान तरीका

चिकन से भी महंगी बिकने वाली ये देसी सब्जी, जानिए खेती का आसान तरीका

मध्य प्रदेश के किसानों के लिए अब नई उम्मीद की किरण उभर रही है। पारंपरिक धान, गेहूं और मक्का जैसी फसलों की जगह अब किसान ऐसी सब्जियों की ओर रुख कर रहे हैं, जिनमें लागत कम और मुनाफा कई गुना ज्यादा है। इन्हीं में से एक है ककोड़ा — एक देसी सब्जी, जिसकी मांग आजकल आसमान छू रही है। खास बात यह है कि यह सब्जी चिकन से भी महंगी बिक रही है और किसानों के लिए सोना उगलने वाली फसल साबित हो रही है।

 

ककोड़ा – स्वाद और सेहत का खजाना
ककोड़ा का वैज्ञानिक नाम Momordica dioica है। यह सब्जी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पोषक तत्वों का भंडार है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन, मिनरल्स, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं। यही कारण है कि आजकल लोग इसे सेहतमंद भोजन में शामिल करने लगे हैं। आयुर्वेद में भी ककोड़ा के औषधीय गुणों का जिक्र मिलता है।

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बाजार में चौंकाने वाला रेट
जहां आम सब्जियां 30 से 60 रुपये किलो मिलती हैं, वहीं ककोड़ा फिलहाल 300 से 350 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिक रहा है। यही वजह है कि इस सब्जी की खेती करने वाले किसान अच्छा-खासा मुनाफा कमा रहे हैं। यदि इसकी बिक्री स्थानीय मंडियों के साथ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी की जाए, तो कमाई और कई गुना बढ़ सकती है।

आसान खेती, ज्यादा मुनाफा
ककोड़ा की खेती किसी बड़ी तकनीकी जानकारी पर निर्भर नहीं है। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह कम लागत और कम जोखिम वाली फसल है।
भूमि – हल्की दोमट मिट्टी सबसे बेहतर।
बीज रोपण – मानसून की शुरुआत में 2–3 इंच गहराई पर बीज बोना उपयुक्त।
सिंचाई – शुरुआती दिनों में नियमित पानी जरूरी, लेकिन जलभराव से बचना जरूरी।
कटाई – 70 से 90 दिन में फल तोड़ने योग्य हो जाते हैं।

किसानों की राय
किसान भावेश पटेल का कहना है कि ककोड़ा छोटे और बड़े दोनों किसानों के लिए फायदेमंद फसल है। इसमें लागत बहुत कम आती है और बाजार भाव इतना अच्छा है कि मेहनत का कई गुना मुनाफा मिलता है। साथ ही, स्वास्थ्य जागरूकता के चलते इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।

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किसानों का उज्जवल भविष्य
ककोड़ा की खेती किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने का बेहतरीन साधन बन रही है। सरकार की योजनाओं और प्रशिक्षण का लाभ लेकर किसान आसानी से इसकी शुरुआत कर सकते हैं। आने वाले समय में यह सब्जी किसानों को मालामाल करने के साथ ही उपभोक्ताओं के लिए स्वास्थ्यवर्धक विकल्प भी साबित होगी। अगर किसान परंपरागत खेती से हटकर इस नई राह को अपनाएं, तो उनका भविष्य निश्चित ही सुनहरा होगा।








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