देशी जुगाड़ से बना डाला अनोखा लटकता पूल

देशी जुगाड़ से बना डाला अनोखा लटकता पूल

बीजापुर : गंगालूर के ग्रामीण आदिवासियों का कमाल, रस्सी, लोहे की जाली, लकड़ी की बल्लियों से बना डाला हैंगिंग ब्रिज।

"आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है" – यह कहावत एक बार फिर चरितार्थ हुई है छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के गंगालूर क्षेत्र में, जहां हिरोली पटेलपारा के ग्रामीण आदिवासियों ने अपनी सूझबूझ और देशी इंजीनियरिंग से एक लटकता पूल ( हैंगिंग ब्रिज) बना डाला। लोहे की जाली, रस्सियों और लकड़ी की बल्लियों से बना यह 60 मीटर लंबा लटकता पूल नाले के ऊपर 8 से 10 मीटर की ऊंचाई पर टिका है, जो दोनों किनारों के पेड़ों से रस्सियों के सहारे बंधा हुआ है।

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वह नाला जिस पर यह लटकता पूल बनाया गया है, उसमें एनएमडीसी से निकला लाल पानी बहता है, ग्रामीणों के लिए साल के 5-6 महीने चुनौती बन जाता था। नाले के उस पार स्थित "देवी धाम" तक पहुंचना, जहां ग्रामीण अपने आराध्य देवी-देवताओं की पूजा करने जाते हैं, बारिश के मौसम में असंभव-सा हो जाता था। इस समस्या से निपटने के लिए ग्रामीणों ने स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर यह अनोखा पूल तैयार किया। अब इस पुल के जरिए वे आसानी से देवी धाम पहुंच रहे हैं।

ग्रामीणों की यह पहल न केवल उनकी मेहनत और जुगाड का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सीमित संसाधनों के बावजूद मानव अपनी रचनात्मकता और दृढ़ संकल्प से क्या क्या हासिल कर सकता हैं। बस्तर के बीहड़ों में ऐसे दृश्य दुर्लभ हैं, जहां ग्रामीण आदिवासी अपनी देशी जुगाड़ से असाधारण कार्य कर दिखाते हैं। इससे पहले नारायणपुर के अबूझमाड़ में भी ग्रामीणों ने बांस, लकड़ी और पत्थरों से पुलिया बनाकर सुर्खियां बटोरी थीं।

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यह लटकता पूल न केवल एक देशी इंजीनियरिंग उपलब्धि है, बल्कि ग्रामीणों की आत्मनिर्भरता और सामुदायिक भावना का जीवंत उदाहरण है। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि चुनौतियों के बीच भी मानव की सृजनशीलता और हौसले की कोई सीमा नहीं है।







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