धर्म ग्रंथों में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है। इस बार शरद पूर्णिमा का पर्व 2 दिन मनाया जाएगा। इनमें से एक दिन व्रत-पूजा की जाएगी व दूसरे दिन स्नान-दान।
आगे जानें कब करें शरद पूर्णिमा की पूजा?
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। मान्यता है शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और जो जाग रहा होता है, उसके घर में निवास करती हैं। इस बार आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि का संयोग 6 व 7 अक्टूबर को बन रहा है। इनमें से 6 अक्टूबर, सोमवार को शरद पूर्णिमा का व्रत-पूजा की जाएगी और अगले दिन यानी 7 अक्टूबर को स्नान-दान। जानें इस कैसे करें शरद पूर्णिमा की पूजा, कौन-सा मंत्र बोलें व शुभ मुहूर्त…
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शरद पूर्णिमा की रात में देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसके लिए शुभ मुहूर्त 11 बजकर 45 मिनिट से 12 बजकर 34 मिनिट तक रहेगा। यानी आपको पूजा के लिए सिर्फ 49 मिनिट का समय मिलेगा। इस निशिथ काल मुहूर्त कहते हैं। इस दिन किया गया लक्ष्मी पूजन दिवाली जितनी ही शुभ फल देने वाला है।
6 अक्टूबर, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें।
- रात में शुभ मुहूर्त से पहले फिर से स्नान कर साफ कपड़े पहनें। घर में साफ स्थान पर लकड़ी का पटिया रखकर इस पर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- देवी लक्ष्मी को कुंकुम का तिलक लगाएं। फूलों की माला पहनाएं और शुद्ध घी का दीपक भी जलाएं। अबीर, गुलाल, वस्त्र, सुपारी आदि चीजें भी देवी को अर्पित करें।
- सुहाग की सामग्री जैसे लाल चुनरी, चूड़ी, मेहंदी ये भी देवी को चढ़ाएं। अपनी इच्छा अनुसार देवी को भोग लगाएं। पूजा के बाद कपूर से देवी लक्ष्मी की आरती करें।
- संभव हो तो कुछ देर देवी लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें। अगली सुबह यानी 7 अक्टूबर, मंगलवार को ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
- इस प्रकार शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और हर तरह का सुख भी प्राप्त होता है।
ऊं जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
॥ऊं जय लक्ष्मी माता...॥
दुर्गा रुप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ऊं जय लक्ष्मी माता...॥
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी, भव निधि की त्राता ॥
॥ऊं जय लक्ष्मी माता...॥
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद्गुण आता ।
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥
॥ऊं जय लक्ष्मी माता...॥
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
॥ऊं जय लक्ष्मी माता...॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥
॥ऊं जय लक्ष्मी माता...॥
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाता, पाप उतर जाता ॥
॥ऊं जय लक्ष्मी माता...॥
ऊं जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
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