खेती-किसानी में छोटी-सी लापरवाही कभी-कभी बड़े नुकसान का कारण बन जाती है. इस बार गेहूं की बुवाई करने वाले किसानों को विशेषज्ञों ने एक जरूरी सलाह दी है. अगर खेत में पिछले तीन साल से जिंक सल्फर का उपयोग नहीं किया गया तो इस सीजन में इसे जरूर डालें. जिंक की कमी से न केवल पैदावार घटती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है. लेकिन, एक बात का खास ध्यान रखना होगा कि इसे फास्फोरस वाली खाद के साथ न मिलाएं.
मध्य प्रदेश में खरगोन के कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह बताते हैं कि खेत की मिट्टी से लगातार फसल लेने के कारण पोषक तत्वों की कमी हो जाती है. किसान अक्सर खाद तो डालते हैं, लेकिन सभी तत्वों की पूर्ति नहीं कर पाते. ऐसे में समय-समय पर मिट्टी का परीक्षण कराना बेहद जरूरी है. मिट्टी जांच से यह पता चल जाता है कि कौन-सा पोषक तत्व कितना कम या ज्यादा है और उसकी कितनी मात्रा डालनी है.
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मिट्टी परीक्षण क्यों जरूरी
जिन खेतों में तीन साल या उससे ज्यादा समय से जिंक सल्फर का उपयोग नहीं हुआ है, वहां इसकी कमी पाई गई है. इसलिए रबी सीजन में गेहूं की बुवाई के समय अगर जिंक सल्फर खेतों में डाला जाए तो फसल का उत्पादन और विकास दोनों बेहतर हो जाते हैं. इससे दाने मोटे और अच्छी क्वालिटी के तैयार होते हैं.
फास्फोरस के साथ जिंक सल्फर डालने के नुकसान
विशेषज्ञ किसानों को सलाह देते हैं कि प्रति एकड़ गेहूं की फसल में लगभग 10 किलो जिंक सल्फर डालें. ,लेकिन इसे कभी भी फास्फोरस वाली खाद जैसे डीएपी, सुपर या एपीके के साथ न मिलाएं. दोनों को एक साथ डालने से यह खेत की मिट्टी में फिक्स हो जाते हैं और फसल को कोई लाभ नहीं मिलता.
जिंक सल्फर डालने का सही तरीका
किसानों के लिए सबसे सुरक्षित तरीका यह है कि जिंक सल्फर को फास्फोरस डालने से एक सप्ताह पहले या एक सप्ताह बाद खेतों में डालें. इससे मिट्टी में संतुलन बना रहता है और पौधों को जरूरी पोषण समय पर मिलता है. सही तरीके से जिंक सल्फर का उपयोग करने पर गेहूं की पैदावार में बढ़ोतरी होगी और खेत की मिट्टी भी लंबे समय तक उपजाऊ बनी रहेगी.
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