प्राकृतिक खेती से समृद्धि की राह पर ग्राम कुटरू के किसान छत्रपाल वर्मा कम लागत, अधिक लाभ और स्वस्थ जीवन की ओर अग्रसर

प्राकृतिक खेती से समृद्धि की राह पर ग्राम कुटरू के किसान छत्रपाल वर्मा कम लागत, अधिक लाभ और स्वस्थ जीवन की ओर अग्रसर

बेमेतरा टेकेश्वर दुबे :  जिला बेमेतरा के विकासखंड साजा अंतर्गत ग्राम कुटरू के प्रगतिशील किसान छत्रपाल वर्मा ने अपनी लगन, दूरदृष्टि और नवाचार से खेती के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रस्तुत की है। वर्मा ने परंपरागत रासायनिक खेती को छोड़कर जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को अपनाकर सफलता की नई कहानी लिखी है। वर्षों तक परंपरागत खेती करने वाले वर्मा रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भर थे। इसके कारण खेती की लागत बढ़ती जा रही थी, मिट्टी की उर्वरता घट रही थी और उत्पादन के बावजूद मुनाफा कम होता जा रहा था।

समस्याएँ जिनसे बदलाव की शुरुआत हुई

छत्रपाल वर्मा बताते हैं कि उन्हें निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था,रासायनिक खाद और दवाइयों पर अधिक खर्च, मिट्टी की उत्पादकता में गिरावट, स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर, बाजार में उपज का उचित मूल्य न मिलना जैसी परेशानी थी | इन समस्याओं ने उन्हें खेती की नई दिशा में सोचने पर विवश किया।

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परिवर्तन की शुरुआत — 2019 में ली प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग

वर्ष 2019 में  वर्मा ने जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF) का प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण से प्रेरित होकर उन्होंने अपनी 5 एकड़ भूमि पर रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती अपनाई। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें सिखाया गया कि प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से न केवल लागत घटाई जा सकती है, बल्कि मिट्टी की सेहत और फसलों की गुणवत्ता भी बेहतर की जा सकती है। प्राकृतिक खेती के उपाय जो अपनाए गए उनमे जीवामृत और घनजीवामृत का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने हेतु किया गया। बीजामृत से बीजों का उपचार कर उन्हें रोगमुक्त बनाया गया।

नीमास्त्र और बहास्त्र जैसे जैविक घोलों से कीट नियंत्रण किया गया। फसल विविधता के तहत धान, दलहन, तिलहन और सब्जियों की खेती की गई। मल्चिंग और मृदा आवरण तकनीक से नमी संरक्षण और खरपतवार नियंत्रण सुनिश्चित किया गया।श्री वर्मा के पास 5 देशी गायें हैं, जिनके गोबर और गोमूत्र से वे जीवामृत तैयार करते हैं। इससे उनकी खेती पूरी तरह आत्मनिर्भर और रसायनमुक्त बन गई है।

धान की पारंपरिक एवं सुगंधित किस्मों का जैविक उत्पादन

कोदो जैसे मिलेट्स की खेती को बढ़ावा, मौसमी सब्जियों का जैविक उत्पादन, जैविक तरीकों से मिट्टी का पुनर्जीवन परिणाम यह निकला कि घटती लागत, बढ़ता लाभ और स्वस्थ जीवन | प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद श्री वर्मा की खेती की लागत में उल्लेखनीय कमी आई। जहाँ पहले प्रति एकड़ ₹25,000 तक की लागत आती थी, वहीं अब यह घटकर ₹6,000–7,000 प्रति एकड़ रह गई है।

मिट्टी की उर्वरता में सुधार हुआ, फसलों की गुणवत्ता बेहतर हुई और स्थानीय बाजार में उनके जैविक उत्पादों को पहले से दोगुना मूल्य मिलने लगा। परिवार अब रसायन मुक्त भोजन का सेवन कर रहा है जिससे स्वास्थ्य में भी सुधार आया है।आज श्री छत्रपाल वर्मा न केवल स्वयं सफल किसान हैं, बल्कि वे आसपास के गाँवों के किसानों को भी प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दे रहे हैं। वे किसानों को बताते हैं कि रासायनिक खेती से बाहर निकलकर प्राकृतिक खेती अपनाना न केवल पर्यावरण के लिए हितकारी है, बल्कि यह आर्थिक रूप से भी अधिक स्थायी मॉडल है।

किसान की प्रेरक बात नेचुरल फार्मिंग से न केवल खेत की मिट्टी जीवित हुई, बल्कि हमारे जीवन में भी नई ऊर्जा आई। यह खेती कम लागत, अधिक लाभ और स्वस्थ जीवन की कुंजी है।  श्री छत्रपाल वर्मा का यह प्रयास जिला बेमेतरा के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने यह सिद्ध किया है कि यदि दृढ़ निश्चय, वैज्ञानिक सोच और परिश्रम को साथ लेकर चलें, तो खेती न केवल लाभकारी बल्कि पर्यावरण और समाज दोनों के लिए कल्याणकारी बन सकती है।








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