छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में आमतौर पर हल्दी की खेती कम मात्रा में की जाती है. पारंपरिक रूप से इस खेती को पहले गांव में लोग अपने घर के उपयोग और आय का जरिए समझते थे. देशी गोबर खाद से खेती करके बेहतर उत्पादन करते थे, लेकिन धीरे-धीरे इस खेती को लोग तवज्जो देना बंद कर दिए, लेकिन फिर एक बार सरगुजा में हल्दी कि जैविक खेती लौट आई हैं, जिससे अब किसान न सिर्फ घर में इस्तेमाल करेगा, बल्कि अच्छे से जैविक खाद्य के उपयोग से बंफर उत्पादन कर सकता हैं. इसके लिए जानकर के सुझाव को समझिए इन तरीकों का इस्तेमाल करिए होगी मोटी कमाई.
खेती की तैयारी और बुवाई का समय
जानकर सिकंदर प्रजापति ने बताया कि गाँव में हल्दी की बुवाई आमतौर पर जुलाई के पहले सप्ताह में की जाती है. बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई की जाती है और गोबर खाद डालकर मिट्टी को उपजाऊ बनाया जाता है. इसके बाद हल्दी की गांठों को गड्ढे खोदकर लगाया जाता है, जब पौधा लगभग एक फीट का हो जाता है. तब किसान दोबारा गोबर खाद डालते हैं और मिट्टी चढ़ा देते हैं. फसल धीरे-धीरे स्वाभाविक रूप से बढ़ती है, जिसमें किसी रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती.
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प्राकृतिक तरीके से बढ़ती फसल जानिए
सिकंदर प्रजापति के मुताबिक गाँवों में अभी लोग घर के उपयोग के लिए ही हल्दी की थोड़ी मात्रा लगाते हैं, लेकिन इसका उत्पादन अच्छा होता है. यदि बड़े पैमाने पर खेती की जाए तो यह आय का एक बेहतर साधन साबित हो सकती है. किसान गर्मी के मौसम में खेत की जुताई कर लेते हैं ताकि बारिश शुरू होते ही (जुलाई) बुवाई की जा सके. कई किसान खेत के किनारों पर कच्चा गोबर भी डालते हैं, जिससे उत्पादन और बढ़ जाता है.
कीमत और आर्थिक संभावनाएँ हल्दी कि खेती
सिकंदर प्रजापति बताते है कि कच्ची हल्दी का भाव बाजार में ₹60 से ₹70 प्रति किलो तक मिलता है. वहीं, यदि हल्दी को उबालकर, सुखाकर और मिल में पीसकर बेचा जाए तो इसकी कीमत ₹250 से ₹300 प्रति किलो तक पहुँच जाती है. इससे किसान को दोगुना-तीनगुना लाभ मिलता है.
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
सिकंदर प्रजापति ने बताया कि हल्दी भारतीय संस्कृति और परंपराओं में शुभता का प्रतीक मानी जाती है. शादी-विवाह में दूल्हा-दुल्हन को हल्दी लगाने की परंपरा आज भी जीवित है. इसके अलावा दीवाली और अन्य धार्मिक आयोजनों में भी हल्दी का प्रयोग होता है. मान्यता है कि हल्दी से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. लोग इसे पानी में घोलकर घर में छिड़काव करते हैं, जिससे वातावरण शुद्ध और पवित्र बनता है.
किसानों के लिए संदेश जानिए
स्थानीय जानकर सिकंदर प्रजापति ने गाँव के किसान मानते हैं कि हल्दी की खेती पूरी तरह से जैविक तरीकों से की जानी चाहिए. इसमें केवल गोबर खाद या वर्मीकंपोस्ट का उपयोग करें, क्योंकि रासायनिक खाद से न सिर्फ फसल की गुणवत्ता घटती है बल्कि मिट्टी भी खराब होती है. प्राकृतिक हल्दी न सिर्फ स्वादिष्ट होती है, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होती है.

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