रायगढ़ : एनटीपीसी का फ्लाई एश अब कोयले से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। ट्रांसपोर्टरों का पूरा फोकस इस काम पर हो गया है। एक बार फिर से फ्लाई एश परिवहन में कमीशन का खेल शुरू हो चुका है। केवल चेहरे बदले हैं, रेट वही है, तरीका भी वही है। एनटीपीसी लारा पावर प्लांट में अभी 800-800 मेगावाट की दो यूनिट चल रही हैं। दो यूनिट से निकल रहे फ्लाई एश को यूटीलाइज करने के लिए कंपनी ने एनएचएआई से एग्रीमेंट किया है। पहले परिवहन का ठेका छह कंपनियों को दिया गया था। लोकल ट्रांसपोर्टरों के गठजोड़ ने इस काम को अलग मुकाम पर पहुंचाया है। बिना जीपीएस के एश का परिवहन नहीं हो सकता लेकिन यहां फिर से वही खेल शुरू हो चुका है।
प्लांट से निकली गाड़ी पाटन पहुंचने के बजाय, आसपास रास्ते में कहीं एश डंप कर वापस आ रही है। उदाहरण के लिए सीजी 13 नंबर की कोई गाड़ी 1234 एश डाइक से एक दिन लोड होकर दुर्ग के लिए निकली। अब यह गाड़ी डिलीवरी प्वाइंट पर पहुंचकर, अनलोड होने के बाद रायगढ़ वापस आती है तो एक दिन गुजर जाता है। अब यह गाड़ी दूसरे दिन ही वापस लोड होने पहुंचेगी, लेकिन ट्रक में लोड फ्लाई एश को पास में ही कहीं खाली करके उसी दिन लोडिंग प्वाइंट पर पहुंचा दिया जाता है। गाड़ी का नंबर बदल दिया जाता है। कुछ महीने तक एनटीपीसी ने इस पर नियंत्रण किया था लेकिन अब दोबारा से काम शुरू हो चुका है। केवल चेहरे बदल गए हैं। ट्रांसपोर्टरों के अलावा इस कारोबार को चलाने वाले और कमीशन लेने वाले हाथ बदल गए हैं।
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ठेका पाने वाली कंपनियों पर कंट्रोल
एनटीपीसी से फ्लाई एश परिवहन का ठेका भले ही बाहर की कंपनियों को मिल रहा है, लेकिन इसमें लोकल गाडिय़ां ज्यादा लगाई जा रही हैं। लोकल ट्रांसपोर्टरों ने सिंडीकेट बनाकर ठेका कंपनियों से अपने हिसाब से काम करवा रहे हैं। छपोरा एश डाइक से प्रतिदिन 70-100 गाडिय़ां निकलती हैं। बीच-बीच में 10-20 गाडिय़ों से जीपीएस निकालकर रख लेते हैं। एश लोकल में ही खपाकर जीपीएस को अगले दिन कार में ले जाकर दुर्ग में रिसीविंग करवा ली जाती है। पर्यावरण विभाग कार्रवाई करता है तो एनटीपीसी का नाम खराब होता है। पेनाल्टी एनटीपीसी के नाम पर होती है जो ट्रांसपोर्ट कंपनियां भरती हैं।
रायपुर में पकड़ी थी बिना फिटनेस की गाड़ियां
एनटीपीसी एक एश डाइक से दुर्ग जा रही करीब 20 गाडिय़ों को रायपुर के पास तेलीबांधा पुलिस ने पकड़ा था। इनमें फिटनेस, बीमा, रजिस्ट्रेशन ही नहीं था। ड्राइवरों के पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं मिला। गाडिय़ां ओवरलोड थीं। जीपीएस भी नहीं थे। ट्रांसपोर्टरों ने नया सिंडीकेट बना लिया है।
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