तराई की उपजाऊ मिट्टी ने अब एक नई फसल की खुशबू बिखेर दी है। जहां पहले किसान धान और गेहूं की परंपरागत खेती में घटती आमदनी से परेशान थे, वहीं लखीमपुर खीरी के किसान रमाकांत मिश्रा ने नई राह चुनकर मिसाल पेश की है। उन्होंने विदेशों में उगने वाले फल ड्रैगन फ्रूट को तराई की धरती पर सफलतापूर्वक उगाकर यह साबित कर दिया कि कृषि में नवाचार ही असली समृद्धि का रास्ता है।
पसगवां ब्लॉक के भिलावां ग्राम पंचायत निवासी रमाकांत मिश्रा ने दो वर्ष पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर अपनी भूमि का परीक्षण कराया और उसके अनुरूप थाईलैंड से ड्रैगन फ्रूट के पौधे मंगवाए। आज उनके खेत में करीब 900 पौधे फल दे रहे हैं। पहली बार उन्होंने सीधे दिल्ली की आजादपुर मंडी के बड़े खरीददारों से संपर्क कर फसल बेची, जिससे उन्हें करीब 15 लाख रुपये की कमाई हुई।
कम लागत, लंबे समय तक मुनाफा
रमाकांत बताते हैं कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में शुरुआती लागत अधिक होती है, लेकिन एक बार पौधे तैयार हो जाने के बाद यह 30 साल तक फल देने योग्य रहते हैं। एक सीजन में पौधा तीन से पांच बार फल देता है। प्रत्येक फल का वजन 300 से 800 ग्राम तक होता है। कंटीली संरचना होने के कारण यह फसल आवारा पशुओं से भी सुरक्षित रहती है।
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खेती का तरीका भी आसान
ड्रैगन फ्रूट के पौधों के बीच लगभग चार से पांच फीट की दूरी रखी जाती है। हर पौधे के पास एक खंभा या बांस की बल्ली लगाई जाती है, जिसके सहारे यह ऊपर की ओर बढ़ता है। पौधा लगभग 16 महीने में फल देना शुरू कर देता है। इसके साथ किसान मक्का या अमरूद जैसी फसलें भी उगा सकते हैं।
मार्केट में बढ़ी मांग, कीमत 300 रुपये किलो तक
ड्रैगन फ्रूट की स्थानीय बाजार में 250 से 300 रुपये प्रति किलो तक कीमत मिल रही है। अब क्षेत्र के अन्य किसान भी रमाकांत मिश्रा की सफलता से प्रेरित होकर मिट्टी परीक्षण करवा रहे हैं और विशेषज्ञों की राय ले रहे हैं।
स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी
यह फल मधुमेह, हृदय रोग और तनाव जैसी बीमारियों में फायदेमंद माना जाता है। इसमें मौजूद फाइबर और प्राकृतिक पोषक तत्व कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं। रमाकांत मिश्रा की यह पहल न केवल क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है, बल्कि यह भी साबित कर रही है कि अगर सही दिशा में मेहनत की जाए तो खेती भी लाखों की आमदनी का जरिया बन सकती है।
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