धनतेरस दीपोत्सव का पहला दिन, करें इस कथा का पाठ, सुख-समृद्धि से भरा रहेगा दिन

धनतेरस दीपोत्सव का पहला दिन, करें इस कथा का पाठ, सुख-समृद्धि से भरा रहेगा दिन

कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व धनतेरस दीपोत्सव का पहला दिन होता है। यह दिन केवल सोना-चांदी खरीदने का नहीं, बल्कि आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि, धन के देवता कुबेर और देवी लक्ष्मी की कृपा पाने का भी है। शास्त्रों के अनुसार, धनतेरस के दिन पूजा के समय इसकी व्रत कथा का पाठ करना बहुत मंगलकारी माना गया है, तो आइए पढ़ते हैं।

धनतेरस की कथा 

एक बार भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर आने का फैसला किया। तब देवी लक्ष्मी ने भी उनके साथ जाने की इच्छा जताई। विष्णु जी ने कहा, "तुम मेरे साथ चल सकती हो, लेकिन मेरी एक बात माननी होगी, मैं जब तक वापस न आऊं, तुम दक्षिण दिशा की ओर बिलकुल मत जाना।" लक्ष्मी जी ने हां कर दी और वे धरती पर आ गए। कुछ देर बाद, विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को एक जगह रुकने को कहा और खुद दक्षिण दिशा की ओर चले गए। भगवान के जाते ही लक्ष्मी जी के मन में यह जानने की इच्छा उत्पन्न हुई कि आखिर उस दिशा में ऐसा क्या है जहां जाने से उन्हें मना किया गया है? वह नहीं मानी और उनके पीछे-पीछे चल दीं। आगे जाकर उन्हें सरसों का एक खेत मिला, जिसमें सुंदर फूल खिले थे। लक्ष्मी जी को फूल बहुत अच्छे लगे, तो उन्होंने कुछ फूल तोड़कर अपना शृंगार कर लिया। थोड़ा और आगे चलने पर उन्हें गन्ने का खेत दिखा, जहां उन्होंने गन्ने तोड़कर उनका रस भी चूसा। तभी भगवान विष्णु वहां आ गए।

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जब उन्होंने लक्ष्मी जी को सरसों के फूल तोड़े हुए और गन्ने का रस चूसते हुए देखा, तो वे बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा, "मैंने तुम्हें यहां आने से मना किया था! आपने मेरी बात नहीं मानी और एक किसान के खेत से चोरी का अपराध भी कर बैठीं। इस अपराध के दंड के रूप में अगले 12 वर्षों तक इसी गरीब किसान के घर उसकी सेवा करनी होगी।" यह कहकर भगवान विष्णु उन्हें छोड़कर अपने निवास क्षीरसागर लौट गए। लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर में साधारण वेश में रहने लगीं। एक दिन लक्ष्मी जी ने किसान की पत्नी से कहा, "तुम स्नान के बाद मेरी बनाई हुई देवी लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा करो, फिर रसोई का काम करना।

तुम जो भी मांगोगी, तुम्हें वह मिल जाएगा।" किसान की पत्नी ने ठीक वैसा ही किया। पूजा करने के अगले ही दिन, लक्ष्मी जी के आशीर्वाद और कृपा से किसान का घर अन्न-धन से भर गया और किसान की गरीबी दूर हो गई और उसके 12 साल बड़े सुख-शांति से बीत गए। जब 12 साल पूरे हो गए, तो भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को वापस लेने आए। लेकिन अब किसान ने उन्हें भेजने से मना कर दिया, क्योंकि लक्ष्मी जी के कारण उसके जीवन में समृद्धि आई थी। तब भगवान विष्णु ने किसान को समझाया कि लक्ष्मी चंचल होती हैं और वे किसी एक जगह नहीं रुकतीं। वे तो शाप के कारण 12 सालों से तुम्हारी सेवा कर रही थीं और अब उनका समय पूरा हो गया है।

हालांकि, किसान के अधिक हठ करने पर लक्ष्मी जी ने उसे वचन दिया कि "वह धनतेरस के दिन उसकी पत्नी से दोबारा उनकी पूजा करवाएंगी, और जहां उनकी पूजा होगी, वहां वे जरूर निवास करेंगी।" ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन जो भी व्यक्ति सच्चे मन से लक्ष्मी जी और धन के देवता कुबेर की पूजा करता है और सात्विकता बनाए रखता है, उसके घर में धन और समृद्धि हमेशा बनी रहती है।








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