कोर्ट ने भारत में बढ़ती नशीली दवाओं की दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता पर उठाया सवाल

कोर्ट ने भारत में बढ़ती नशीली दवाओं की दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता पर उठाया सवाल

नई दिल्ली :  सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि अवैध नशीले पदार्थों और मादक पदार्थों के तस्करी और निर्माण से संबंधित मामलों में छोटे खिलाड़ी अक्सर गिरफ्तार होते हैं, जबकि असली मास्टरमाइंड और सप्लायर पर्दे के पीछे बने रहते हैं।

जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की पीठ ने शुक्रवार को भारत में बढ़ती नशीली दवाओं की समस्या की दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता पर सवाल उठाया, यह बताते हुए कि कितने असली मास्टरमाइंड वास्तव में पकड़े गए हैं और कितने मादक पदार्थों के स्त्रोतों को प्रभावी रूप से खोजा गया है।

एनडीपीएस मामलों में, कभी भी मास्टरमाइंड की गिरफ्तारी नहीं होती- कोर्ट

जस्टिस सुंदरेश ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि ''एनडीपीएस मामलों में, कभी भी मास्टरमाइंड की गिरफ्तारी नहीं होती। वे पीछे रहते हैं, स्पष्ट है, ए, बी, सी, और डी पकड़े जाएंगे। कितने मामलों में मास्टरमाइंड पर आरोप लगाए गए हैं? कितने स्त्रोतों को खोजा गया है? यह अवैध पदार्थ कहां से आया?''

ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी -जो अपनी कमी से नही सीखते वों सदैव कमतर ही रहतें हैं 

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां उस समय आईं जब उन्होंने एक गुरजीत सिंह द्वारा दायर जमानत याचिका की सुनवाई की, जिसे पंजाब के लुधियाना में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा मेथामफेटामाइन के बड़े पैमाने पर निर्माण और अंतरराष्ट्रीय तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

गुरजीत सिंह की जमानत याचिका को खारिज की

फरवरी, 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरजीत सिंह की जमानत याचिका को खारिज करते हुए अवलोकन किया कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री ने उसे एक संगठित अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के हिस्से के रूप में मेथामफेटामाइन के निर्माण और तस्करी में संलग्न किया।

उच्च न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि गवाहों के बयान, रिकवरी, वित्तीय ट्रेल्स और डिजिटल फारेंसिक्स सहित सुबूतों ने सिंह की सक्रिय भागीदारी को दर्शाया, जो एनडीपीएस अधिनियम की धारा 29 (अपराधी साजिश) के प्रविधानों को आकर्षित करता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कही ये बात

सर्वोच्च न्यायालय ने नशीली दवाओं के मामलों में गिरफ्तारी के पैटर्न पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ''यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम सच जानते हैं, लेकिन हमें अपनी अंतरात्मा का उत्तर देना है।'' इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की जमानत याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, लेकिन उन्हें इसे वापस लेने की अनुमति दी, ताकि वे ट्रायल कोर्ट से राहत मांग सकें।








You can share this post!


Click the button below to join us / हमसे जुड़ने के लिए नीचें दिए लिंक को क्लीक करे


Related News



Comments

  • No Comments...

Leave Comments