देश की जेलों में 1,191 बच्चे मां के साथ,छत्तीसगढ़ का छठा स्थान

देश की जेलों में 1,191 बच्चे मां के साथ,छत्तीसगढ़ का छठा स्थान

रायपुर: देश की जेलों में महिला कैदियों के साथ उनके बच्चों के रहने के मामलों में छत्तीसगढ़ का छठा स्थान है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से हाल ही में भारत की जेलों में बंद कैदियों से संबंधित रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है, जहां 311 महिला कैदी बच्चों सहित जेल में हैं।

इसके बाद पश्चिम बंगाल में 170, बिहार में 167, मध्यप्रदेश में 126, झारखंड में 84 और राज्य की विभिन्न जेलों में 60 महिला कैदी अपने बच्चों के साथ बंद हैं। विशेषज्ञों के अनुसार जेल में बच्चों का रहना उनके मानसिक और सामाजिक विकास के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। हालांकि जेल प्रशासन द्वारा ऐसे बच्चों के लिए विशेष सुविधाओं का दावा किया जाता है, लेकिन हालात अभी भी चिंताजनक हैं। प्रदेश की अलग-अलग जेलों में 60 ऐसी महिला कैदी बंद हैं, जिनके बच्चे अभी छोटे हैं।

मां ने कोई जुर्म किया, लेकिन सजा जैसे इन बच्चों को भी मिल रही है। ये आंकड़े 31 दिसंबर 2023 तक के हैं। जो महिला कैदी बच्चों के साथ जेल में रहती हैं, उनके लिए अलग बैरक होती है। जेल में छह साल से छोटे बच्चों को मां के साथ रखने का नियम है। इस कारण इन बच्चों को भी जेल में रखा गया है।

देश की जेलों में 1,191 बच्चे मां के साथ

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो साल 2023 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल 1,318 महिला कैदी अपने 1,492 बच्चों के साथ जेलों में रह रही थीं। इनमें से 1,049 महिलाएं विचाराधीन बंदी थीं, जिनके साथ 1,191 बच्चे जेल में रह रहे थे। वहीं 249 महिला कैदियों को दोष सिद्ध किया जा चुका था और वे अपने 272 बच्चों के साथ जेलों में थीं। यह स्थिति बच्चों के अधिकारों और उनके समुचित विकास के लिए गंभीर प्रश्न खड़े करती है।

जेल का वातावरण सुरक्षित नहीं

बाल अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले सुनील श्रीवास्तव का कहना है कि सरकार को महिला कैदियों के बच्चों के लिए वैकल्पिक देखभाल, पालन-पोषण और शिक्षा की ठोस व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि उनका बचपन जेल की सलाखों में कैद न हो जाए, साथ ही वे समाज की मुख्यधारा से कट न जाएं। जेल का वातावरण बच्चों के लिए न तो सुरक्षित है और न ही अनुकूल। हालांकि कुछ राज्यों में बाल संरक्षण नीति के तहत प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन यह पूरे देश में एकरूपता के साथ लागू नहीं हो पा रहे हैं।

परवरिश और शिक्षा व्यवस्था चिंताजनक

बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि जेल का माहौल बच्चों के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास पर नकारात्मक असर डालता है। जेलों में खेल, शिक्षा और पोषण की सुविधाएं सीमित होती हैं, जिससे उनका सर्वांगीण विकास बाधित होता है। हालांकि, कुछ जेलों में आंगनबाड़ी और प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की गई है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं कही जा सकती।









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