बेमेतरा टेकेश्वर दुबे : बेमेतरा जिले का प्रसिद्ध गिधवा-परसदा पक्षी विहार एक बार फिर सुर्खियों में है। इस वर्ष छत्तीसगढ़ रजत महोत्सव के दौरान प्रकृति प्रेमियों और पक्षी विशेषज्ञों के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यह रही कि यहां पहली बार ‘मलार्ड’ नामक विदेशी पक्षी प्रजाति देखी गई है। यह पक्षी अनास वंश की एक प्रसिद्ध जाति है, जो सामान्यतः उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका, यूरोप, एशिया और उत्तर अफ्रीका के ठंडे इलाकों में पाई जाती है। यह पहली बार है जब छत्तीसगढ़ की धरती पर ‘मलार्ड’ जैसी प्रवासी प्रजाति देखी गई है और वह भी बेमेतरा के शांत व प्राकृतिक सौंदर्य से भरे गिधवा-परसदा जलाशय में। इस ऐतिहासिक आगमन ने गिधवा-परसदा को एक अंतरराष्ट्रीय पक्षी आगमन स्थल के रूप में नई पहचान दी है।
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गिधवा-परसदा की प्राकृतिक छटा बनी विदेशी पक्षियों का आश्रय
लगभग 180 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले गिधवा-परसदा के तालाब और आर्द्रभूमि हर वर्ष सैकड़ों देशी-विदेशी पक्षियों का स्वागत करते हैं। अब तक यहाँ ग्रे हेरॉन, ओपन बिल स्टॉर्क, ब्लैक-हेडेड आईबिस, कॉमन टील, पिंटेल डक जैसी प्रजातियाँ पाई जाती थीं। लेकिन इस वर्ष मलार्ड के आगमन से इस क्षेत्र का महत्व और बढ़ गया है। वन विभाग और पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार, मलार्ड का आगमन यह संकेत देता है कि बेमेतरा की जलवायु और जलाशयों की पारिस्थितिकी अंतरराष्ट्रीय प्रवासी पक्षियों के लिए अनुकूल बन रही है। स्थानीय पक्षी प्रेमी एवं फोटोग्राफरों ने मलार्ड की उपस्थिति को कैमरे में कैद किया, जिसके बाद इसकी पुष्टि हुई।
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पर्यावरण और पर्यटन की दृष्टि से नया मील का पत्थर
गिधवा-परसदा को राज्य सरकार द्वारा पहले ही संभावित रैमसर साइट के रूप में प्रस्तावित किया गया है। अब मलार्ड के आगमन से इस क्षेत्र की जैव-विविधता और अंतरराष्ट्रीय महत्ता और बढ़ गई है। वन एवं पर्यटन विभाग द्वारा यहां इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने, पर्यटक सुविधाएँ विकसित करने और पक्षी संरक्षण के लिए विशेष योजनाएँ तैयार की जा रही हैं। स्थानीय ग्रामीणों, वन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी से गिधवा-परसदा अब न केवल बेमेतरा बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ का गौरव बन चुका है। यहां हर वर्ष सैकड़ों पर्यटक, विद्यार्थी, पक्षी वैज्ञानिक और फोटोग्राफर पहुंचते हैं।
बेमेतरा के गिधवा-परसदा में मलार्ड का आगमन छत्तीसगढ़ के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है — जिसने राज्य को अंतरराष्ट्रीय पक्षी प्रवास मानचित्र पर नई पहचान दिलाई है। यह न केवल प्राकृतिक धरोहर का सम्मान है, बल्कि यह संदेश भी कि यदि पर्यावरण संतुलन और संरक्षण के प्रयास निरंतर जारी रहे, तो छत्तीसगढ़ की भूमि विश्व-स्तरीय जैव विविधता केंद्र के रूप में उभर सकती है।



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