गेंहू की इन टॉप 10 किस्मों से किसानों को होगा मुनाफा,जानें अन्य खासियत!

गेंहू की इन टॉप 10 किस्मों से किसानों को होगा मुनाफा,जानें अन्य खासियत!

रबी सीजन में गेंहू की खेती किसान जोरों शोरो से कर रहें है और ये अपेक्षा कर रहे हैं कि गेंहू का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन हो ताकि वह अपनी आमदनी में इजाफा कर अपनी आर्थिक स्थिति में भी सुधार ला सकें. ऐसे में किसानों को गेंहू की उन्नत किस्मों की भी तलाश है जो उनको कम लागत में अच्छी पैदावार दें सकें. तो उनकी ये तलाश खत्म. गेंहू की ये 10 किस्में- एच आई 8759, एच डी 3236, एच डी 3249, एच आई 1636 पूसा वकूला, एच डी 3406 (उन्नत एचडी 2967), एच डी 3369, एच आई 1650( पूसा ओजस्वी), एच आई 1653( पूसा जागृति), एच आई 1654(पूसा आदिति), एच आई 8826(पूसा पौष्टिक)  किसानों की आय के साथ उपज में भी बढ़ोतरी करेंगी।

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गेंहू की 10 उन्नत किस्में

एच आई 8759(पूसा तेजस)

इन राज्यों के किसान इस किस्म को अपनाएं- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कोटा और राज्स्थान के उदयपुर डिवीजन और उत्तर प्रदेश के झांसी डिवीजन के लिए यह किस्म उपयोगी है.

गेंहू की यह किस्म 56.9 से 75.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देगी.

इस किस्म को पकने में लगभग 117 दिन का समय लगता है.

इस किस्म की खूबी है यह काले और भूरे रतुए के लिए प्रतिरोधी है और साथ ही यह उच्च तापमान के लिए सहिष्णु है.

एच डी 3236

इन क्षेत्रों के किसान पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, जम्मू कश्मीर, झांसी, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड अच्छी पैदावार कर सकते हैं.

इस किस्म उपज करीबन 57.5 से 79.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन देती है.

परिपक्वता- 142 दिनों में ये किस्म पककर तैयार हो जाती है.

इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा करीबन 12.8% पाई जाती है और इसमें कनाल बंट, फ्लैग कंड रोगों से लड़ने की भी क्षमता है.

एच डी 3249

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिश, असम के इलाकें इन किस्मों के लिए उत्तम है.

औसत उपज 48.8 से 65.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन देती है.

यह किस्म बहुत कम वक्त 122 दिनों में ही पक जाती है.

इस किस्म में कई पोषक तत्व- प्रोटीन 10.7% और लौह 42.5 पीपीएम उच्च मात्रा में मौजूद होते हैं.

एच आई 1636 पूसा वकूला

इन क्षेत्रों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कोटा और राज्स्थान के उदयपुर डिवीजन और उत्तर प्रदेश के झांसी डिवीजन के किसानों को यह किस्म फायदा दिला सकती है.

इसकी उपज लगभग 56.6 से 78.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है जिससे किसान आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

परिपक्वता गेंहू की ये किस्म 119 दिनों में ही जल्द तैयार हो जाती है.

गेंहू की ये किस्म रोग प्रतिरोधी है और इस किस्म से चपाती, बिस्कुट बनाने की भी गुणवत्ता है.

एच डी 3406 (उन्नत एचडी 2967)

यह किस्म प्रति हेक्टेयर 54.7 से 70.4 क्विंटल तक उपज देती है.

रोग प्रतिरोधक करनाल बंट, पत्ती झुलसा और पीली रतुआ जैसे प्रमुख रोगों से सुरक्षित रखती है.

बेहतर गुणवत्ता दाने मोटे, चमकदार और भरपूर होते हैं.

एच डी 3369

यह किस्म अनुकूल परिस्थितियों में 50.6 से 71.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है.

रोग प्रतिरोधक पत्ती झुलसा, रतुआ और करनाल बंट रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोधक क्षमता.

यह विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में अच्छी तरह बढ़ती है.

यह किस्म मात्रा 149 दिनों में तैयार हो जाती है.

एच आई 1650( पूसा ओजस्वी)

यह किस्म औसतन 57.2 से 73.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है.

रोग प्रतिरोधक पत्ती झुलसा, करनाल बंट और रतुआ रोगों के प्रति अच्छी सहनशीलता.

कम अवधि वाली यह 118 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे अगली फसल के लिए समय बचता है.

उत्तम गुणवत्ता दाने मोटे, चमकदार और आटे की गुणवत्ता बेहतरीन होती है.

एच आई 1653( पूसा जागृति)

यह गेहूं की उन्नत किस्म अनुकूल परिस्थितियों में 51.1 से 69.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उत्कृष्ट उपज देने में सक्षम है, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलता है.

इस किस्म में करनाल बंट, पत्ती झुलसा, भूरे और पीले रतुआ जैसे प्रमुख रोगों के प्रति मजबूत प्रतिरोध पाया जाता है, जिससे फसल सुरक्षित रहती है.

साथ ही इस किस्म को तैयार होने में लगभग 148 दिनों का समय लगता है.

एच आई 1654(पूसा आदिति)

यह किस्म अनुकूल परिस्थितियों में 51.8 से 72.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देने में सक्षम है.

यह फसल लगभग 148 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे समय और लागत दोनों की बचत होती है.

यह उत्तर भारत की विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है और सूखा सहनशीलता भी अच्छी है.

यह किस्म दो सिंचाई में ही अधिक उत्पादन देती है.

एच आई 8826(पूसा पौष्टिक)

गेंहू की यह किस्म किसानों को लगभग 48.8 से 73.7 तक की उपज दे सकती हैं.

इस किस्म के दानों में जिंक, आयरन और प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह पोषण के दृष्टिकोण से अत्यंत लाभदायक है.

रोग प्रतिरोधक करनाल बंट, पत्ती झुलसा और रतुआ रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोधकता रखती है.

इस किस्म की खासियत है कि ये मात्रा 108 दिनों में तैयार हो जाती है.









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