गिलोय, जिसे अमृता या गुडुची भी कहा जाता है, एक औषधीय लता है जो आयुर्वेद में बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, बुखार, शुगर और कई अन्य बीमारियों में उपयोगी होती है. गिलोय, जिसे अमृता या गुडुची भी कहा जाता है, एक औषधीय लता है जो आयुर्वेद में बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, बुखार, शुगर और कई अन्य बीमारियों में उपयोगी होती है. इसकी बढ़ती मांग के कारण आज गिलोय की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बन चुकी है. किसान इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमा सकते है.
गिलोय की खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह पनपती है. इसे लगभग हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, परंतु दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि पानी रुकने से जड़ों को नुकसान हो सकता है.
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सितंबर महीने में गिलोय की मोटी, परिपक्व कलमें चुनें. इन कलमों को पॉलीथीन बैग या रेज्ड बेड में लगाया जाता है. लगाने से पहले कलम के निचले सिरे को रूटेक्स पाउडर के घोल में डुबो लें, ताकि जल्दी जड़ें निकल सकें. नर्सरी को छायादार स्थान पर रखें और एक दिन छोड़कर हल्की सिंचाई करें. लगभग 15 से 25 दिनों में कलमों में जड़ें विकसित हो जाती हैं.
आगे कहा कि जुलाई में, जब मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है, तब पौधों को 30x30x30 सेंटीमीटर के गड्ढों में रोपित करें. प्रत्येक गड्ढे में 2-3 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद और 500 ग्राम नीम की खली मिलाएं. पौधों के बीच 1.2 से 1.5 मीटर की दूरी रखें. रोपण के बाद हल्की सिंचाई करें और आगे नियमित अंतराल पर पानी देते रहें.
उन्होंने है कि गिलोय एक चढ़ने वाली लता है, इसलिए इसे सहारे की आवश्यकता होती है. इसके लिए लकड़ी की खपच्चियों, बाँस या अन्य पेड़ों का सहारा दिया जा सकता है. यदि आप पॉलीहाउस में खेती कर रहे हैं, तो तार या नेट की व्यवस्था करना बेहतर रहेगा ताकि लता अच्छी तरह फैल सके.
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उन्होंने बताया कि पौधों के आसपास नियमित रूप से निराई-गुड़ाई करें ताकि खरपतवार न उगें. गिलोय में आमतौर पर कीटों या रोगों का प्रकोप बहुत कम होता है, फिर भी किसी संक्रमण के लक्षण दिखें तो जैविक कीटनाशक या नीम के घोल का छिड़काव करें. समय-समय पर पौधों की कटाई-छंटाई करने से नई लताएं तेजी से बढ़ती है.
आगे कहा कि गिलोय की लता 4-5 साल में पूरी तरह परिपक्व होती है. इतनी पुरानी बेलों को ही काटना उचित माना जाता है क्योंकि उनमें औषधीय तत्वों की मात्रा अधिक होती है. बेलों को हाथ या तेज धारदार औज़ार से सावधानीपूर्वक काटें और छायादार स्थान पर सुखाएं. सूखी लताओं को पाउडर, टुकड़ों या रस के रूप में उपयोग किया जा सकता है.



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