शिक्षकों का आक्रोश : जेडी के खिलाफ सोमवार से सोशल मीडिया में अनूठा अभियान

शिक्षकों का आक्रोश : जेडी के खिलाफ सोमवार से सोशल मीडिया में अनूठा अभियान

जगदलपुर  : जिला मुख्यालय में दीपावली के पूर्व बस्तर संभाग के शिक्षकों का आक्रोश ज्वालामुखी की तरह संभागीय कमिश्नर कार्यालय और जिला कलेक्टर कार्यालय में फूट पड़ा था।संभागीय संयुक्त शिक्षा संचालक बस्तर(जेडी) राकेश पांडे के कथित तानाशाही रवैए से नाराज सैकड़ों शिक्षकों ने संभागीय आयुक्त और कलेक्टर कार्यालय का घेराव किया था। “जेडी भगाओ, बस्तर बचाओ” के नारों के बीच शिक्षकों ने साफ कहा था कि अब सब्र का बांध टूट चुका है।जेडी को नहीं हटाए जाने पर अब संभाग के शिक्षक सोमवार से काली पट्टी लगा कर सोशल मीडिया में तस्वीरें साझा करके अपने विरोध का नया तरीका शुरू करने वाले है।

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जगदलपुर के स्टेडियम में जुटे शिक्षकों का आरोप था कि राकेश पांडे का निरीक्षण अब अपमान अभियान बन गया है..। वे स्कूल की दीवारों की धूल से शिक्षक की योग्यता तौलते हैं, पढ़ाई की गुणवत्ता पर नहीं बल्कि छोटी गलतियों पर फटकार लगाते है..। इससे शिक्षकों का मनोबल गिर रहा है और शिक्षा का माहौल प्रभावित हो रहा है..!

शिक्षकों का आरोप है कि निरीक्षण के नाम पर मौखिक नोटिस, निलंबन की धमकी और समझौते के संकेत दिए जाते है..। कोंडागांव में जींस पहनने पर एक शिक्षक को नोटिस देने के बाद यह विवाद पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन था..। “दादागिरी बंद करो, सम्मान दो” का नारा अब बस्तर के हर कोने में गूंज रहा है।

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बताया जाता है कि राकेश पांडे की पोस्टिंग एक प्रभावशाली जनप्रतिनिधि की सिफारिश से हुई थी। कमजोर रिकॉर्ड और राजनीतिक संरक्षण के बावजूद वे पद पर बने हुए है..! हेमंत उपाध्याय जैसे सख्त अफसर के समय शिक्षक आंदोलन पर नहीं उतरे, लेकिन पांडे के खिलाफ चार–पांच सौ शिक्षक सड़कों पर आ गए । इतनी बड़ी नौबत क्यों आई यह बड़ा सवाल अब सिस्टम में अपनी जगह तलाश रहा है..।

शिक्षकों का कहना है कि रायपुर में रहते हुए वे इतने विवादित नहीं थे, लेकिन गृह जिले में आते ही उनका रील बाजी का नया ट्रेंड शुरू हो गया..। चर्चा यह भी है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव उनके क्लासमेट रहे हैं, इसलिए संभवतः उन्हें संरक्षण मिलता हुआ लग रहा है..!

अब सवाल उठता है कि जब शिक्षकों ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से शिकायत की और उन्होंने कार्रवाई का आश्वासन दिया, तब भी पांडे पद पर क्यों बने हुए हैं..? क्या यह संकेत है कि बस्तर की सियासत में अफसरशाही, राजनीति पर हावी हो चुकी है..?

कहते है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी बस्तर से खुलती है । ऐसे में शिक्षकों का यह आक्रोश न सिर्फ प्रशासन बल्कि राजनीति दोनों के लिए चेतावनी सा लगता है..। बस्तर का शिक्षक सिर्फ स्कूलों में छात्रों से घुला मिला नहीं होता वह पालकों का भी उतना ही करीबी होता है। फिर इस गंभीर मामले को क्यों नजर अंदाज किया जा रहा है ..?एक ओर एक असफर है तो दूसरी ओर हजारों की संख्या में शिक्षक है..!









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