बलरामपुर : राजपुर नगर पंचायत में डीजल चोरी और वित्तीय अनियमितता का मामला अब प्रशासनिक ढिलाई का प्रतीक बन गया है। नगर पंचायत अध्यक्ष धरम सिंह द्वारा सीएमओ रविन्द्र लाल पर लगाए गए डीजल भुगतान घोटाले के आरोपों को एक महीना बीत चुका है, पर जांच आज तक पूरी नहीं हो पाई है।
18 सितंबर को कलेक्टर को सौंपी गई शिकायत में अध्यक्ष ने आरोप लगाया था कि जुलाई 2024 से जनवरी 2025 के बीच सफाई और पेयजल कार्यों के लिए दो ट्रैक्टरों में केवल ₹65 हजार का डीजल खर्च होना चाहिए था, परंतु भुगतान हुआ 2,02,884 — यानी लगभग 1.37 लाख की संदिग्ध बढ़ोतरी।
सीएमओ का पंप संचालकों से मिलीभगत
शिकायत में साफ कहा गया कि ट्रैक्टर के नाम पर खरीदा गया डीजल सीएमओ के निजी वाहन में इस्तेमाल हो रहा था। अध्यक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि डीजल की कालाबाज़ारी की गई और पंप संचालकों के साथ मिलकर भुगतान में हेराफेरी रची गई।
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कलेक्टर की जांच समिति बनी औपचारिकता
25 सितंबर को कलेक्टर ने जांच के लिए तीन-सदस्यीय समिति गठित की थी — अपर कलेक्टर प्रमोद गुप्ता अध्यक्ष, कोषालय अधिकारी दशरथ प्रसाद सोनी और एसडीएम देवेंद्र प्रधान को इसमें शामिल किया गया।
समिति को एक सप्ताह में रिपोर्ट देनी थी, पर 30 दिन बाद भी न रिपोर्ट, न कार्रवाई! अब सवाल उठ रहा है कि क्या जांच सिर्फ समाचार ठंडा करने का हथियार थी?या फिर इस मामले में किसी प्रभावशाली की अदृश्य छाया काम कर रही है?
चार गुना अधिक डीजल भुगतान
राज्य शासन के 2015 के आदेश के अनुसार,नगर पंचायतों में प्रति वर्ष अधिकतम 1200 लीटर डीजल खर्च की अनुमति है। इसके बावजूद राजपुर में भुगतान का आंकड़ा तय सीमा से चार गुना अधिक पहुँच गया। स्पष्ट संकेत है कि न केवल प्रशासनिक नियंत्रण विफल रहा, बल्कि भ्रष्टाचार की गंध भी तेज़ हो चली है।
जांच सिर्फ़ फाइलों का इंधन जलाने के लिए ?
जनता के बीच यह चर्चा गर्म है कि जब आरोप इतने स्पष्ट हैं और दस्तावेज़ सामने हैं, तो जांच रिपोर्ट को आखिर रोका क्यों जा रहा है? क्या यह फाइल किसी “सिस्टम शेल्टर” में फंस चुकी है?
स्थानीय नागरिकों का कहना है —जिस पंचायत में डीजल तक ईमानदारी से खर्च नहीं हो पा रहा, वहां विकास का ईंधन कैसे जलेगा?”
बहरहाल आम लोगों की नज़र प्रशासन पर है। कि, क्या इस घोटाले की तह तह जाएगा? या फिर राजपुर की जांच भी उसी तरह ठंडी पड़ जाएगी जैसे टंकी में खत्म हुआ डीजल।



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