जानिए मार्गशीर्ष अमावस्या 2025 डेट और शुभ मुहूर्त

जानिए मार्गशीर्ष अमावस्या 2025 डेट और शुभ मुहूर्त

नई दिल्ली : सनातन धर्म में अमावस्या तिथि को पितरों को प्रसन्न करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस खास अवसर पर भगवान विष्णु और पितरों की पूजा होती है। साथ ही गरीब लोगों या मंदिर में दान करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि अमावस्या पर इन कामों को करने से साधकों को पितरों की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही सुख-समृद्धि में वृद्धि होगी। आइए जानते हैं कि कब मनाई जाएगी मार्गशीर्ष अमावस्या और शुभ मुहूर्त के बारे में।

मार्गशीर्ष अमावस्या 2025 डेट और शुभ मुहूर्त 

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष अमावस्या की शुरुआत 19 नवंबर को सुबह 09 बजकर 43 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 20 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 16 मिनट पर होगा। ऐसे में 20 नवंबर को मार्गशीर्ष अमावस्या मनाई जाएगी।

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सूर्योदय और सूर्यास्त का समय


सूर्योदय: प्रातः 06 बजकर 38 मिनट पर
सूर्यास्त: सायं 05 बजकर 34 मिनट पर

ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04 बजकर 53 मिनट से 05 बजकर 45 मिनट तक
विजय मुहूर्त - दोपहर 01 बजकर 55 मिनट से 02 बजकर 39 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त - शाम 05 बजकर 34 मिनट से 06 बजकर 01 मिनट तक

मार्गशीर्ष अमावस्या पूजा विधि 

  1. सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करें। इसके बाद भगवान सूर्य देव को अर्घ्य दें।
  2. देसी घी का दीपक जलाकर भगवन विष्णु की पूजा-अर्चना करें।
  3. पितरों का पिंडदान और तर्पण करें।
  4. मंत्रों का जप और पितृ चालीसा का पाठ करें।
  5. कुत्ते, गाय, चींटियों के लिए दाना डालें।
  6. पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रभु से प्रार्थना करें।
  7. मंदिर या गरीब लोगों में अन्न-धन समेत आदि चीजों का दान करें।

मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन इन बातों का रखें ध्यान

  1. मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन किसी से वाद-विवाद न करें।
  2. किसी के बारे में गलत न सोचें।
  3. तामसिक भोजन का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
  4. किसी भी शुभ काम की शुरुआत न करें।
  5. मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन पूर्वजों आत्मा की शांति प्राप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करें।
  6. इसके अलावा बाल और नाखून न काटें।
  7. पीपल के पेड़ के पास दीपक जलाकर पूजा-अर्चना करें और 5 या 7 बार परिक्रमा लगाएं।
  8. करें इन मंत्रों का जप

पितृ मंत्र

1. ॐ पितृ देवतायै नम:

2. ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।

3. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च

नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:









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