छत्तीसगढ़िया और परदेशिया दो शब्द छत्तीसगढ़ की फिजा में अनुगुंजित हो रहें है,सामंजस्य की जगह टकराव के नए -नए रास्ते खोजे जा रहे हैं, स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण आवश्यक है फिर इसके लिए ही रस्साकशी क्यों ? क्या संस्कृतियों को आत्मसात नही किया जा सकता? जब सिंधी,पंजाबी ,उड़िया ,गुजराती, राजस्थानी ,महाराष्ट्रीयन,तमिल ,तेलगु ----------------------की पहचान छत्तीसगढ़ में कायम रखी जा सकती है, तो फिर छत्तीसगढ़िया छत्तीसगढ़ में अपनी पहचान कैसे छोड़ दे? अपनी माटी पे अपना मान तो कोई भी बनाएं रखेगा ,जब टूटी छत्तीसगढ़ महतारी की मूर्ति तो क्या सारे छत्तीसगढ़ के निवासियों को एक सा दर्द हुआ ? दर्द में एकरूपता नही थी यही से नया दर्द उभरा । प्रवासी तो छत्तीसगढ़िया भी हैं, वों भी रोजगार की तलाश में अन्य प्रदेशों में जातें हैं ,रोजगार की तलाश में प्रवास सदियों से होता आ रहा ,पर टकराव तब बढ़ता है जब विशिष्ठता की चाहत कर्मभूमि को जन्मभूमि जैसा मान नही देती है, यूपी ,बिहार देश के दो बड़े प्रदेश जहां पलायन सबसे बड़ी समस्या है, इस पलायन के पीछे कोई तो वजह होगी ,क्या इसका विश्लेष्ण किसी ने किया ? श्रमिक और व्यापारी दो समुदायों के प्रवासी होने की प्रबल संभावना होती है,रोजगार और समृद्धि ही इसके मूल कारण हैं ,जिस भूमि ने आपको अवसर दिया ,समृद्धि दी, वहां संघर्ष क्यों ?
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मायके से ससुराल आकर नववधु सामंजस्य बिठा लेती है, पूरा जीवन गुजार देती है ,समझ से परिवार विकसित होता है, विघटन तो जिद्द की परिणिति है, जो छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रच बस गया जिसे छत्तीसगढ़ी आती है ,जो इसे अपनी पहचान मानता है ,वों छत्तीसगढ़िया है ,जो अपने मूल स्थान के पहचान को छत्तीसगढ़ पर थोपना नही चाहता पर उसका अस्तित्व प्रेम के आधार पर बनाएं रखता है ,वों छत्तीसगढ़िया है,छत्तीसगढ़ के तालाबों में शीतला माँ मंदिर होता है, वहां छठी मईया की पूजा भी होती है, यही सामंजस्य चाहिए ,आराध्यों को मानवजनित दंभो में नही उलझाना चाहिए, छत्तीसगढ़ का ऐसा कोई हिस्सा नही है जहां प्रवासी नहीं है ,औद्योगिक एवम् कृषि सम्पन्नता ने लोगों को न सिर्फ आकर्षित किया बल्कि उन्हें यहीं का निवासी बना दिया, जिस माटी पर आप कर्मशील हैं ,वहां शीलवान क्यों नही बन पा रहे ? देश का विभाजन त्रासदी थी ,बलात लोगों को विस्थापित होना पड़ा, तब पहचान का संकट था, अब तो समृद्धि ही आपकी पहचान है ,इस माटी ने आपको सबकुछ दिया, छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया यूँ ही नहीं कहा जाता।
छत्तीसगढ़ ने सबको आत्मसात किया ,छत्तीसगढ़ की सत्ता में किसकी भागीदारी नहीं है ,राजधानी की तीनों शहरी सीटों पर भिलाई विधानसभा से आजतक कोई मूल छत्तीसगढ़िया विधायक नही बना है, ऐसी कई सीटें है ,क्या ये राजनीतिक रसूख छत्तीसगढ़ियों को किसी और प्रदेश में मिला है? जहां वों प्रवासी हैं यदि बात छेड़ेंगे तो छोड़ेंगे नहीं की है, तो फिर छेड़ा किसने पहले और कौन छोड़ेगा नहीं, मसला रायपुर का और विरोध प्रदर्शन जबलपुर भोपाल में क्यों ? यदि उद्दवेलन समाज में है तो राज्य भी उद्दवेलित हो सकता है, कटोरा तालाब का नाम इस आधार पर बदल गया,तेलीबांधा श्मशान कैसे सिंधी श्मशान बन गया ? किस आधार पर पचपेड़ी नाका के नाम बदलने की मांग की गई है ,महादेव घाट की पहचान बदलने की कोशिश कौन कर रहा ? क्या ये सामंजस्य के मसलें हैं या फिर अपनी श्रेष्ठता साबित करने का प्रयास? न आप, अपनी भाषाई ,सामाजिक और प्रादेशिक पहचान को थोपने से बाज आ रहे, न उसका महिमामंडन करने से ,छत्तीसगढ़ में होने वाले अपराध और अपराधियों का यदि विश्लेष्ण हुआ तो बहुतों के वजूद संकट में आ जाएंगे । अपने देश जा रहे ये वाक्य हमनें बहुतों से सुना है, मतलब आप छत्तीसगढ़ को परदेश मानते हैं ,जब तक आप छत्तीसगढ़ को परदेश मानते हैं तब तक आप परदेशिया हैं, हमने सर्वस्व आपकों दे दिया, पर आप वर्चस्व अपना चाहते हैं, अनुचित कृत्य करके उचित सम्मान की लालसा क्यों? यदि आप छत्तीसगढ़िया हैं तो फिर दूसरी भाषाई, सामाजिक प्रादेशिक पहचान की जरूरत क्यों ? तस्वीरों पर चप्पल मार के जो आत्मसंतुष्टि की जा रही है उससे कभी तृप्ति नही मिलने वाली, मूल से संघर्ष आमूल चुल परिवर्तित कर देगा ,छत्तीसगढ़िया हो तो पुरे मनोयोग से छत्तीसगढ़िया बनों ,जहाँ का खाया वहां का नहीं गया ,तो फिर क्या किया ,यदि मान छत्तीसगढ़ का है यदि आप अपने आप को छत्तीसगढ़िया समझते हैं तो फिर छत्तीसगढ़ियों से ,छत्तीसगढ़ से, किस बात की अदावत ,मान किसी का न टूटे सम्मान सबका बना रहे ।
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी



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