राजधानी में दिव्यांगों के साथ पुलिस की बर्बरता, छः सूत्रीय मांगों को लेकर कर रहे थे प्रदर्शन

राजधानी में दिव्यांगों के साथ पुलिस की बर्बरता, छः सूत्रीय मांगों को लेकर कर रहे थे प्रदर्शन

 रायपुर : राजधानी रायपुर में राज्य के सैकड़ों दिव्यांगों पर शासन-प्रशासन ने अमानवीय बर्बरता की हदें पार कर दीं।समाज कल्याण मंत्री के आश्वासन पर पूरे प्रदेश से आए दिव्यांग मुख्यमंत्री से अपनी छः सूत्रीय मांगों पर चर्चा की उम्मीद में रायपुर पहुंचे थे, लेकिन उन्हें मिला केवल अपमान, पुलिसिया रौब और जबरन बसों में ठूंसकर अभनपुर भेजे जाने का दंश। समाज कल्याण मंत्री के कहने पर दिव्यांगों का एक प्रतिनिधि मंडल गुरुवार सुबह एसडीएम के माध्यम से समाज कल्याण मंत्री से मिलने गया। वहां उन्हें भरोसा दिया गया कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से चर्चा कर समाधान निकाला जाएगा। पर जब प्रतिनिधि मंडल पहुंचा तो पता चला कि मुख्यमंत्री बाहर हैं और समय मिलना संभव नहीं है। 

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इस सूचना के बाद दिव्यांगजन लक्ष्मी राजवाड़े के शंकर नगर स्थित निवास के सामने शांति पूर्वक बैठे हुए थे, तभी अचानक बड़ी संख्या में रायपुर पुलिस वहां पहुंची। बिना किसी पूर्व सूचना या चेतावनी के पुलिस ने सैकड़ों दिव्यांगों को जानवरों की तरह घसीटकर बसों में डाला और अभनपुर के समाजिक भवन में कैद कर दिया।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि पुलिस ने कई दिव्यांग पुरुषों और महिलाओं के साथ अत्यंत असंवेदनशील व्यवहार किया। जिन दिव्यांगों के शरीर का आधा हिस्सा पोलियोग्रस्त था, उन्हें भी घसीटकर बसों में फेंका गया।

आंदोलनकारियों का कहना है कि उन्होंने न तो कोई तोड़फोड़ की थी, न ही रास्ता जाम किया, वे तो बस मुख्यमंत्री से मुलाकात की उम्मीद में बैठे थे। लेकिन राज्य सरकार ने संवेदनहीनता का ऐसा उदाहरण पेश किया जो पूरे प्रदेश के लिए कलंक बन गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर के विकलांगों को “दिव्यांग” कहकर सम्मान देने की बात कही थी, पर आज उन्हीं मोदी के ‘दिव्यांगों’ को उनकी पार्टी की सरकार की पुलिस सरेराह घसीट रही है। यह दृश्य न केवल अमानवीय है बल्कि राज्य की संवेदनहीन शासन-व्यवस्था पर सीधा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

जनता और समाजिक संगठनों ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और मांग की है कि दिव्यांगों पर हुए पुलिसिया अत्याचार की उच्च स्तरीय जांच हो, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और दिव्यांगों की छः सूत्रीय मांगों को शीघ्र स्वीकार किया जाए।जब शासन जनता की पुकार सुनने की बजाय उसे दबाने लगता है, तो लोकतंत्र की आत्मा घायल होती है और आज को रायपुर में दिव्यांगों की चीखें इसी लोकतंत्र की पीड़ा बयां कर रही हैं।

 









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