सुलक्षणा पंडित का जन्म 12 जुलाई 1954 को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में हुआ था। उनका परिवार संगीत से गहराई से जुड़ा हुआ था। पिता प्रताप नरेन पंडित रायगढ़ के राजा चक्रधर सिंह के दरबार के प्रतिष्ठित दरबारी कलाकार थे। उनके परिवार का संबंध भारत के महान शास्त्रीय गायक पंडित जसराज से था सुलक्षणा उनके छोटे भाई की बेटी थीं। रायगढ़ और पास के नरियरा गांव, जिसे “छत्तीसगढ़ का वृंदावन” कहा जाता है, ने उनके सुरों की साधना को दिशा दी। बाद में पंडित जसराज के सुझाव पर पूरा परिवार मुंबई चला गया जहाँ से सुलक्षणा ने अपने गायन और अभिनय के सुनहरे सफर की शुरुआत की।
सिंगिंग और अभिनय का सुनहरा सफर
सुलक्षणा पंडित ने सिर्फ 9 वर्ष की उम्र में संगीत की दुनिया में कदम रखा। 1970 के दशक में उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेत्री के रूप में शुरुआत की। उनकी प्रमुख फिल्मों में शामिल हैं:
उलझन (1971) अपनापन (1977) संकोच (1976) संकल्प (1975) हेरा फेरी (1976)
धरम कांटा, वक्त की दीवार, खानदान और अमानत जैसी लोकप्रिय फिल्में
उनकी आवाज़ की मिठास और अभिनय की सादगी ने उन्हें 70 और 80 के दशक की लीडिंग अ भिनेत्रियों में शामिल कर दिया। उन्होंने अपने समय के दिग्गज गायकों मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, और लता मंगेशकर के साथ कई यादगार गीत गाए।
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उनके भाई जतिन-ललित हिंदी सिनेमा की प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी हैं और बहन विजेता पंडित भी मशहूर अभिनेत्री रही हैं।
निजी जीवन और अधूरी प्रेमकहानी
सुलक्षणा पंडित का नाम अभिनेता संजीव कुमार के साथ जोड़ा गया। कहा जाता है कि वे उनसे बेहद स्नेह करती थीं लेकिन यह रिश्ता कभी पूरा नहीं हो सका। दुर्भाग्यपूर्ण संयोग यह रहा कि संजीव कुमार का निधन 6 नवंबर को हुआ था और सुलक्षणा पंडित ने भी 6 नवंबर 2025 को दुनिया को अलविदा कह दिया। फिल्म जगत में इस भावनात्मक संयोग को संगीत के अमर मिलन के रूप में देखा जा रहा है।
निधन और अंतिम यात्रा
6 नवंबर 2025 की शाम को मुंबई के नानावटी अस्पताल में लंबी बीमारी और हार्ट अटैक के बाद सुलक्षणा पंडित का निधन हुआ। वे 71 वर्ष की थीं। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार दोपहर 1 बजे विले पारले के पवन हंस श्मशान घाट में किया जाएगा। फिल्म और संगीत जगत के अनेक दिग्गज कलाकारों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया और उन्हें भारतीय सिनेमा की एक “मधुर आत्मा” कहा।
छत्तीसगढ़ की शान और भारतीय सिनेमा की विरासत
रायगढ़ की बेटी सुलक्षणा पंडित ने अपने सुरों और अभिनय से भारतीय सिनेमा को नई सेंसिटिविटी दी। उनकी विरासत केवल फिल्मों तक सीमित नहीं है बल्कि वह रायगढ़ की उस सांस्कृतिक परंपरा का भी प्रतीक हैं जिसने भारत को अनेक संगीतकार दिए। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि छोटे शहरों से निकली प्रतिभाएँ भी पूरे देश का गौरव बन सकती हैं। सुलक्षणना पंडित आज सुर, सादगी और संवेदना की अमर मिसाल बन चुकी हैं।



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