वृश्चिक संक्रांति पर ऐसे करें सूर्य देव की पूजा, पितरों की कृपा होगी प्राप्त

वृश्चिक संक्रांति पर ऐसे करें सूर्य देव की पूजा, पितरों की कृपा होगी प्राप्त

 हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्षभर में सूर्य देव बारह बार राशियां परिवर्तित करते हैं, जिन्हें संक्रांतियां कहा जाता है। जब सूर्य देव तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं, तब उसे वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। यह संक्रांति इस वर्ष 16 नवंबर 2025, रविवार  को पड़ेगी।

ज्योतिषीय रूप से यह दिन ऊर्जा परिवर्तन, आत्ममंथन और साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त माना गया है। सूर्य देव के इस गोचर से आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि होती है, साथ ही कर्म और आत्म-शुद्धि पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा मिलती है। यह समय आत्मचिंतन, साधना और सकारात्मक रूपांतरण का होता है।

धार्मिक महत्व

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शास्त्रों में वर्णित है कि वृश्चिक संक्रांति के दिन सूर्य देव की उपासना से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि पितरों की कृपा भी प्राप्त होती है। इस दिन स्नान, दान और अर्घ्य देने से जीवन के दोष शांत होते हैं और धर्म-कर्म में प्रगाढ़ता आती है। सूर्योदय के समय तिल, अन्न या स्वर्ण का दान करना अत्यंत शुभ माना गया है।

कई श्रद्धालु इस दिन पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म करते हैं, क्योंकि ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। यह संक्रांति आत्मिक शुद्धि, पुण्य संचय और वंश में समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।

पूजा-विधि और परंपराएं

वृश्चिक संक्रांति के दिन प्रातःकाल स्नान, ध्यान और सूर्य उपासना का विशेष विधान बताया गया है। इस दिन गंगा, यमुना या किसी पवित्र सरोवर में स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य देने से पापों का नाश और पुण्य की वृद्धि होती है। “ॐ घृणिः सूर्याय नमः” मंत्र के साथ जल अर्पण करने से आरोग्य, तेज और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।

धार्मिक मान्यता है कि इस दिन तिल, अन्न, वस्त्र और स्वर्ण का दान करने से ग्रहदोष शांत होते हैं। महिलाएं संक्रांति-व्रत रखकर सूर्य देव से अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

ज्योतिषीय दृष्टि से महत्व


वृश्चिक राशि सूर्य के गोचर के लिए एक अत्यंत प्रभावशाली चरण मानी जाती है। यह राशि जल तत्व से संबंधित होने के कारण भावनाओं, गहराई और रहस्यमय शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। जब सूर्य देव इस राशि में प्रवेश करते हैं, तो व्यक्ति के जीवन में आत्मचिंतन, साधना और अंतरदृष्टि की वृद्धि होती है।

यह अवधि पुराने कर्मों के फल को समझने और आत्मशुद्धि की दिशा में आगे बढ़ने के लिए उपयुक्त होती है। सूर्य की यह स्थिति भीतर की छिपी हुई शक्तियों को जाग्रत करती है, जिससे व्यक्ति अपने भय, असुरक्षा और संदेहों से ऊपर उठकर नयी दिशा में आगे बढ़ सकता है।









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