जानें कब है वृश्चिक संक्रांति? जानिए स्नान-दान का धार्मिक महत्व

जानें कब है वृश्चिक संक्रांति? जानिए स्नान-दान का धार्मिक महत्व

 16 नवंबर 2025 को सूर्यदेव का तुला से वृश्चिक राशि में प्रवेश होगा, जिसे वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। यह दिन आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस परिवर्तन के साथ ऊर्जा का प्रवाह बाहरी संतुलन से आंतरिक गहराई की ओर मुड़ता है। तुला राशि जहां न्याय, संतुलन और सामंजस्य का प्रतीक है, वहीं वृश्चिक राशि आत्मचिंतन, तपस्या और रूपांतरण की ऊर्जा देती है। इसलिए यह संक्रांति आत्मविश्लेषण, ध्यान और साधना के लिए श्रेष्ठ काल मानी जाती है। इस दिन स्नान, सूर्य अर्घ्य और दान से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

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स्नान-दान का धार्मिक महत्व

वृश्चिक संक्रांति के दिन स्नान और दान का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है। इस पवित्र अवसर पर प्रातः काल सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों, सरोवरों या घर के शुद्ध जल में स्नान करने से तन और मन दोनों की शुद्धि होती है। स्नान के उपरांत सूर्यदेव को जल अर्पित कर अर्घ्य दिया जाता है और उनके प्रति आभार प्रकट की जाती है, जिससे आत्मिक शांति और ऊर्जा प्राप्त होती है। धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन तिल, गुड़, वस्त्र, अन्न, घी और दीपदान करना अत्यंत शुभ माना गया है। कहा गया है कि वृश्चिक संक्रांति पर श्रद्धा से किया गया दान व्यक्ति को न केवल वर्तमान जीवन में सुख-समृद्धि देता है, बल्कि आने वाले जन्मों में भी पुण्य का संचय करता है।

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वृश्चिक संक्रांति पर क्या-क्या करना चाहिए?

वृश्चिक संक्रांति धर्म और साधना दोनों दृष्टियों से अत्यंत पवित्र मानी गई है। इस दिन सूर्यदेव को प्रसन्न करने और पुण्य अर्जित करने के लिए कुछ विशेष कर्म करने का विधान बताया गया है- 

प्रातःकाल स्नान करें

सूर्योदय से पहले पवित्र नदी, सरोवर या घर के स्वच्छ जल में स्नान करें। यह शरीर की शुद्धि के साथ मन को भी निर्मल बनाता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है।

सूर्य अर्घ्य दें

स्नान के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करते हुए “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र जपें। इससे जीवन में ऊर्जा, तेज और सकारात्मकता का संचार होता है तथा सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होती है।

दान करें

तिल, गुड़, अन्न, वस्त्र, घी, केसर दीपक या स्वर्ण का दान करें। ऐसा करने से दरिद्रता का नाश होता है, पितरों की कृपा मिलती है और पुण्य का संचय होता है।

दीपदान करें

संध्या समय दक्षिणमुखी दीपक जलाकर सूर्यदेव और पितरों को समर्पित करें। दीपदान से अंधकार का नाश, ज्ञान का प्रकाश और पूर्वजों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

साधना और ध्यान करें

यह दिन आत्मचिंतन, मनोबल और एकाग्रता बढ़ाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। शांत मन से ध्यान करने से आत्मिक उन्नति होती है और मनोविकार दूर होते हैं।









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