नवम्बर का महीना शुरू हो चुका है, ऐसे में रबी फसलों की खेती की शुरुआत हो चुकी है. लेकिन मूंगफली की खेती को लेकर किसानों के मन में यह चिंता बनी रहती है कि आखिर कम लागत में अधिक मुनाफा कैसे कमाया जाए. सर्दियों के मौसम में मूंगफली की मांग बढ़ जाती है, ऐसे में नवंबर में बड़े पैमाने पर किसान इसकी खेती करते हैं. सही तकनीक, मिट्टी की तैयारी और समय पर बीजाई के साथ यह फसल जल्दी तैयार होती है और लागत के मुकाबले अधिक लाभ देती है. यह प्रमुख तिलहनी फसल किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफा दिला सकती है. अगर आप भी कृषि में अपना भविष्य देख रहे हैं, तो जानिए नवंबर में मूंगफली की खेती से आय बढ़ाने का तरीका.
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मूंगफली की खेती में सबसे जरूरी है सही मात्रा में बीज और बुवाई की विधि को समझना. मूंगफली की बुवाई का उपयुक्त समय सिंचित क्षेत्र में जून के प्रथम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक होता है, जिसकी कटाई नवंबर में होती है. वहीं, दूसरी फसल नवंबर में बोई जाती है और मार्च-अप्रैल में कटाई की जाती है. मूंगफली की बुवाई के लिए झुमका किस्म का लगभग 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर प्रयोग किया जाता है, जबकि विस्तारी और अर्ध-विस्तारी किस्मों के लिए 60 से 80 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है. झुमका किस्म की कतारों के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए.
खेत की तैयारी और मिट्टी की सही स्थिति
अच्छी फसल के लिए खेत की तैयारी और सही मिट्टी का चुनाव बेहद जरूरी होता है. मूंगफली की अच्छी फसल के लिए मौसम और मिट्टी दोनों अनुकूल होने चाहिए. इसके लिए दिन का तापमान लगभग 70 से 90 डिग्री फारेनहाइट होना चाहिए और परिपक्व होने के समय रात में हल्की ठंड फसल के लिए फायदेमंद रहती है. साल भर में 51 से 126 सेंटीमीटर बारिश पर्याप्त होती है. मूंगफली के लिए अच्छी जल निकासी वाली, नरम और ढीली दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है, जिसमें कैल्शियम और जैविक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में मौजूद हों.
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उन्नत किस्में जो देंगी अधिक मुनाफा
मूंगफली की खेती के लिए एसबी-11, जेएल-24, जे-38 (जीजी-7), टीएजी-24, जीजी-2, आरजी-138, आरजी-141, कादरी-3, एचएनजी-10, आरएसबी-87, एम-13, एम-335, एमए-10, चंद्रा और सीएसजीएम 84-1 (कौशल) जैसी उन्नत किस्में उपयुक्त हैं. बीज को कवक और जीवाणु के प्रभाव से बचाने के लिए कवकनाशी (3 ग्राम थायरम या कार्बेन्डाजिम या 2 ग्राम मेंकोजेब प्रति किलो बीज की दर से), कीटनाशी (एक लीटर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी प्रति 40 किलोग्राम बीज की दर से) और अंत में राइजोबियम कल्चर तथा फास्फेट विलेयक जीवाणु खाद से उपचारित करना चाहिए. इससे फसल अधिक उपज और गुणवत्ता दोनों में लाभ देती है.



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