गाजर सर्दियों के मौसम की एक प्रमुख फसल है. इस मौसम में इसकी अच्छी मांग और खपत होती है, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा मिलता है. यही कारण है कि गाजर की खेती आजकल किसानों के लिए एक बेहद लाभकारी और आकर्षक व्यवसाय बन गई है. वही इसकी खेती सही तकनीकों और उन्नत किस्मों का चयन करके की जाए, तो किसान लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं.
कृषि उपनिदेशक धीरेंद्र कुमार ने बताया गाजर एक ऐसी फसल है जिसकी खेती रबी व खरीफ के सीजन में की जा सकती है. वहीं, किसान अगर अच्छी पैदावार व लाभ लेना चाहते हैं तो गाजर की कुछ उन्नत किस्में हैं जो कम लागत और कम समय में अधिक पैदावार देती हैं. इन किस्मो की खेती नवंबर व दिसंबर के महीने में कर सकते हैं.
ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी - लाली मेरे लाल की,जित देखूँ तित लाल....
हिसार रसीली गाजर की इस किस्म की बाजार में सबसे ज्यादा मांग रहती है. इसका रंग गहरा लाल, लंबा और पतला होता है. किसानों के बीच भी सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. 30-35 सेंटीमीटर लंबी होती है. फसल 85 से 95 दिनों में तैयार हो जाती है. उत्पादन प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल. इसके अलावा ये रोग प्रतिरोधक भी है.
पूसा मेघाली गाजर की ये किस्म की फसल 100 से 120 दिनों के अंदर उपज देने के लिए तैयार हो जाती है. इसमें केरोटीन की मात्रा अधिक होती है. इसका रंग नारंगी होता है. इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 270 से 300 क्विंटल तक पैदावार हासिल होती है.
पूसा वसुधा ये किस्म एक उष्णवर्गीय श्रेणी की फसल हैं. पूसा वसुधा करीब 85-90 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं. यह किस्म 35 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्रदान करती हैं.
ये भी पढ़े : घर पर गमलों में चेरी टमाटर उगाना बेहद आसान,यहां पढ़ें तरीके
पूसा कुल्फी गाजर एक पीले रंग की किस्म हैं. पूसा अशिता करीब 90- 100 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं. इसकी औसतन पैदावार 25 टन प्रति हेक्टेयर हैं.
पूसा केसर गाजर की एक खास किस्म है. इस किस्म से पैदा होने वाले गाजर का आकार छोटा और रंग गहरा लाल होता है. ये किस्म बीज रोपाई के लगभग 90 से 110 दिनों में तैयार हो जाती है. वहीं यह किस्म पैदावार में भी बेहतर होती है. इस किस्म से प्रति हेक्टेयर तकरीबन 300 क्विंटल का उत्पादन होता है.



Comments