नई दिल्ली : गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपाल की बिल मंजूरी की समय सीमा तय करने वाले मामले पर अपना फैसला सुना दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गवर्नरों के पास विधानसभा से पारित विधेयकों पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी राज्य के गवर्नर के पास केवल तीन विकल्प हैं। किसी भी बिल को गवर्नर या तो मंजूरी दे या दोबारा विचार के लिए भेजना होगा या फिर उन्होंने राष्ट्रपति के पास भेजना होगा।
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राज्यपाल के लिए तय नहीं कर सकते समय सीमा'
'राज्यपाल का बिलों को रोकना संघवाद का उल्लंघन'
फैसला सुनाते हुए पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि राज्यपाल के विवेकाधिकार की संवैधानिक सीमाओं को रेखांकित करते हुए कहा कि बिलों को एकतरफा तरीके से रोकना संघवाद का उल्लंघन होगा।
पांच जजों की बेंच ने कहा कि अगर राज्यपाल अनुच्छेद 200 में तय प्रक्रिया का पालन किए बिना विधानसभा की ओर से पारित बिलों को रोक लेते हैं, तो यह संघीय ढांचे के हितों के खिलाफ होगा।



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