श्रीमद्भागवत गीता सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों में से एक है, जिसमें जीवन के रहस्यों का सार है। यह ज्ञान खुद भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। ऐसा कहा जाता है कि जो इसके महत्व को एक बार समझ जाता है, वो जीवन की हर परिस्थिति में जीना सीख जाता है, तो आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि यह दिव्य उपदेश कब और किस परिस्थिति में दिया गया था?
कब दिया गया था ज्ञान?
श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश मोक्षदा एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में दिया था। यह वह समय था जब कौरवों और पांडवों की सेनाएं युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी थीं और युद्ध का शंखनाद होने ही वाला था। यह घटना द्वापर युग के अंत में हुई थी।
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क्यों दिया गया था गीता का ज्ञान?
मोह का त्याग
जब अर्जुन ने युद्धभूमि में अपने सामने खड़े गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म, और अपने सगे-संबंधियों को देखा, तो उनका मन मोह से भर गया। उनके हाथ से धनुष छूट गया और उन्होंने युद्ध करने से इनकार कर दिया। अर्जुन ने कहा कि मैं राज्य या सुख के लिए अपने ही बंधु-बांधवों को मारकर पाप का भागी नहीं बन सकता।
कर्मयोग की स्थापना
अर्जुन की इस निराशाजनक स्थिति को देखकर भगवान कृष्ण ने सारथी के रूप में खड़े होकर उन्हें उपदेश देना शुरू किया। कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि यह युद्ध केवल राज्य के लिए नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना के लिए लड़ा जा रहा है। श्रीकृष्ण ने कहा कि फल की इच्छा किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करन एक क्षत्रिय होने के नाते, उनका धर्म अधर्म के विरुद्ध लड़ना था।
आत्मा की अमरता
कृष्ण ने अर्जुन को आत्मा की अमरता का ज्ञान दिया, यह समझाते हुए कि शरीर नश्वर है, आत्मा नहीं। इसलिए किसी को मारना या मरना केवल शरीर का परिवर्तन है। भगवान ने अपना विराट स्वरूप दिखाकर यह साफ किया कि इस ब्रह्मांड में सबकुछ उनके अधीन है और उन्हें केवल एक माध्यम बनकर अपना कर्तव्य पूरा करना है।



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