राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद-143 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर शीर्ष अदालत से 14 संवैधानिक सवालों का सलाह मांगी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए सीजेआई की अगुवाई में पांच जजों की संविधान पीठ गठित की थी।
सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि संविधान की व्याख्या और काम करने का तरीका 'स्वदेशी' है। राष्ट्रपति के संदर्भ के सवालों का जवाब देते हुए संविधान पीठ ने कहा कि बिना लिखे संविधान के अंग्रेजी अनुभव के उलट, भारत का एक लिखा हुआ संवैधानिक टेक्स्ट है।
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पीठ ने कहा कि कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के सख्त बंटवारे के कारण अमेरिकी अनुभव बहुत अलग हैं, जिसके लिए प्रेसिडेंशियल वीटो की जरूरत पड़ती है। संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे सीजेआई बी.आर. गवई ने कहा कि भारतीय संविधान सिर्फ अपनाने में ही बदलाव लाने वाला नहीं है, बल्कि यह अपने इस्तेमाल और मतलब में बदलाव लाने वाला रहा है और आगे भी रहेगा। उन्होंने कहा कि यह एक जीवंत और विकसित हो रहे स्वदेशी फाउंडेशन के लिए अपनी कॉलोनियल निशानियों को छोड़ रहा है।
हमने सदियों तक संविधान पर गर्व से काम किया
संविधान पीठ ने कहा कि हमारे विचार में हमारी संवैधानिक सच्चाई इन दोनों में से किसी भी हद तक नहीं है, बल्कि इस बात पर आधारित है कि हमने तीन-चौथाई सदी से ज्यादा समय तक संविधान पर सफलतापूर्वक और गर्व से काम किया है।
कानून बनान कार्यपालिक के कहने पर ही होता है
सीजेआई ने कहा कि दूसरी तरफ, भारतीय संविधान इतने सालों में एक संसदीय मॉडल में बदल गया है, जहां विधायिका एजेंडा, काम और कानून बनाना ज्यादातर कार्यपालिका के कहने पर ही होता है।
1. जब संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के समक्ष कोई विधेयक आता है तो उनके पास क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं?
संविधान पीठ ने कहा, विधानसभा से पारित विधेयक आने पर राज्यपाल उसे मंजूरी दे सकते हैं, रोक सकते हैं या राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आरक्षित रख सकते हैं। अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान के मुताबिक, विधेयक को विधानसभा में वापस भेजना भी जरूरी है। पहला प्रावधान कहता है कि विधेयक को सदन में वापस भेजा जाए। इसमें चौथा विकल्प नहीं है। राज्यपाल के पास विधेयक को सदन में वापस भेजे बिना रोकने का अधिकार नहीं है।
2. क्या कोई विधेयक पेश किए जाने पर मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सहायता और सलाह मानने के लिए राज्यपाल बाध्य हैं?
संविधान पीठ ने कहा, राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के तहत कार्य करता है। राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत विवेक का इस्तेमाल करता है। अनुच्छेद के दूसरे प्रावधान में उनकी राय में शब्दों के उपयोग से संकेत मिलता है। राज्यपाल के पास विधेयक को वापस करने या राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करने का विवेक है।
3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा संवैधानिक विवेक के प्रयोग की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है?
संविधान पीठ ने कहा, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा किए गए कार्यों के लिए विवेक के इस्तेमाल की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है। अदालत ऐसे लिए गए निर्णय की योग्यता और समीक्षा में प्रवेश नहीं कर सकता। राज्यपाल की निष्क्रियता की एक स्पष्ट परिस्थिति में कार्यों का निर्वहन करने के लिए एक सीमित परमादेश जारी कर सकता है।
4- क्या अनुच्छेद 361 संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की कार्रवाई के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध है?
संविधान पीठ ने कहा, अनुच्छेद 361 न्यायिक समीक्षा पर एक पूर्ण प्रतिबंध लगाता है। हालांकि, इसका उपयोग न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे को नकारने के लिए नहीं किया जा सकता है कि यह अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लंबे समय तक निष्क्रियता के मामलों में प्रयोग करने के लिए सशक्त है।
5-7- क्या अनुच्छेद 200 के तहत सभी शक्तियों के प्रयोग के लिए समयसीमा लागू की जा सकती है ? क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है? क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा विवेक के प्रयोग के लिए समयसीमा लागू जा सकती है?
संविधान पीठ ने तीन सवाल 5, 6 और 7 का एक साथ उत्तर दिए हैं। संविधान पीठ ने कहा है कि अनुच्छेद 200 और 201 का पाठ ऐसे तैयार किया गया है, ताकि संवैधानिक प्राधिकारियों को कार्य करने के लिए लचीलापन मिल सके। संविधान में तय समय सीमा के बिना, कोर्ट के लिए अनुच्छेद 200 के तहत शक्तियों के इस्तेमाल के लिए कानूनी तौर पर समय सीमा तय करना सही नहीं होगा। वहीं राज्यपाल के लिए दिए गए तर्क के हिसाब से, अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की मंजूरी न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं है।
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8- क्या राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने और राय लेने की आवश्यकता होती है, जब राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए या अन्यथा आरक्षित रखता है?
संविधान पीठ ने का, राष्ट्रपति को हर बार जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा आरक्षित किया जाता है, तो न्यायालय की सलाह लेने की आवश्यकता नहीं होती है।
9- क्या अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल-राष्ट्रपति के निर्णय, कानून के लागू होने से पूर्व के चरण में न्यायिक समीक्षा के अधीन है?
संविधान पीठ ने कहा, ऐसे निर्णय कानून के लागू होने से पहले के चरण में न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है। विधेयकों को तभी चुनौती दी जा सकती है, जब वे कानून बन जाएं।
10- क्या संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग व राष्ट्रपति/राज्यपाल के आदेश अनुच्छेद 142 के तहत किसी भी तरह से प्रतिस्थापित किए जा सकते हैं?
संविधान पीठ ने कहा, ऐसे आदेश न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 142 के तहत किसी भी तरह से प्रतिस्थापित नहीं किए जा सकते हैं। हम स्पष्ट करते हैं कि संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 142, विधेयकों की 'मंजूर मानी गई सहमति' की अवधारणा की अनुमति नहीं देता है।
11- क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून राज्यपाल की सहमति के बगैर लागू कानून है?
पीठ ने कहा, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बगैर राज्य विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून के लागू होने का कोई सवाल ही नहीं उठता। इसके तहत गवर्नर की कार्यपालिका की भूमिका को कोई दूसरी संवैधानिक अथॉरिटी नहीं बदल सकती।
12- क्या इस शीर्ष कोर्ट की किसी भी पीठ के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि उसके सामने चल रही कार्यवाही में शामिल सवाल ऐसा है, जिसमें संविधान की व्याख्या के बारे में कानून के जरूरी सवाल शामिल हैं
संविधान पीठ ने इस सवाल का जवाब दिए बगैर वापस कर दिया, क्योंकि यह सवाल इस संदर्भ के नेचर से जुड़ा नहीं है।
13- क्या अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं?
संविधान पीठ ने कहा कि इसका जवाब सवाल संख्या 10 में दे दिया गया है।
14- क्या अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमे के अलावा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी और अधिकार क्षेत्र पर रोक लगाता है?
संविधान पीठ ने इस सवाल को निरर्थक बताया।



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