राजधानी में एक राजनैतिक स्मारक है जिसे हम स्काई वॉक के नाम से जानतें हैं, इसे पुर्णतः कब मिलेगी इसका जवाब आज तक तो किसी के पास नहीं है,ये परियोजना जिनके मस्तिस्क की उपज थी उन्हें इसकी अपूर्णता अखर रही है,पुरवर्ती कांग्रेस सरकार ने तो इसकी उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लगा पूर्व मंत्री महोदय के निर्णय क्षमता पर ही सवाल खड़े कर दिए थे, पैसा जब जनता का हो तो सरकार को परवाह कहां किसी बात की रहती है, वाह- वाह में ही सारा ध्यान रहता है,सरकार बदली ,समय बदला ,पूर्व मंत्री ,मंत्री तो नही बन पाए पर माननीय विधायक हो गए, राजनीतिक बिया बान से निकल अपने विधानसभा में घुमने लायक तो हो गए, घूमेंगे तो चौपाटी भी जाएंगे, चौपाटी चढ़ी थी नजरों में अब की उनका वक्त का सूरज भी चढ़ गया, राजनीतिक सफाई बदले वाली ऐसी हुई की चौपाटी सफा चट हो गई ,नियम विरुद्ध चौपाटी बनीं कैसे ?किसी सरकार ने तो नियम तोड़ा होगा ?नगर निगम ने भी आँखें मुंदी होंगी ,हमने तो कांक्रीट रोड के उपर डामर चढ़ते हुए भी देखा है, कितने बार प्लेबर ब्लाक लगते उखड़ते देखा है ,जुगलबंदी फिर हो गई इस बार चौपाटी उखड़ गई , स्काई वॉक का अधुरा रहना , चौपाटी का उखड़ना ,अधूरी राजनीति है,जनता नहीं जिसकी धुरी है, पैसा यदि जनता का हो तो जनप्रतिनिधियों को उसकी महत्ता कहां महसूस होती है, तुमने स्काई वॉक को अधुरा छोड़ा ,मैंने चौपाटी चौपट कर दी ,अब इसमें या उसमें क्या जनकल्याण हुआ? जन -जन राजधानी के गुन लें ये तो राजनीति है गुणा करके राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की जाती है।
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ऐसी कौन सी नगरी समस्या है ,जो राजधानी में नहीं है जलभराव ,जलनिकासी ,प्रदूषित तालाब,जहर घुली हवा,पैरो मे रचता धुआं रूपी कोयला,अवैध बस्तियां कालोनियां ,बेतरिब ट्रैफिक की व्यवस्था, नशे का कारोबार ,फार्म हाउसों,होटलों में पार्टियों की बहार उस पर न्यूड पार्टी का व्यापार, चाकू क्या गोलियां चलती बारम्बार वैसे बच्चे तो सड़क में केक काट रहे ,ये चौपाटी उड़ा रहे,जनता पस्त नेता मस्त इनकी अपनी कथा है ,इनको कहां जनता की व्यथा की चिंता है,राजनीतिक ज्वाला ऐसे ही जनता के पैसों से जलाई जाएगी ,जलन राजनीति की ऐसे ही मिटाई जाएगी ,राजनीति ऐसे ही की जाती है,आदर्श कहां किसी के पास है ,जलने की कहानी तो अपरंपार है, हिसाब कहां राजनीति में राजनीति तो बेहिसाब है ,जिस झीरम कांड को नक्सलियों ने अंजाम दिया, जिसमे कई कांग्रेसियों ने बलिदान दिया, आज उसे कांग्रेसी ही भूल रहे ,कांग्रेसी नेता ही हिडमा को श्रद्धाजलिं दे रहे, फर्जी एनकाउंटर बता लाल सलाम कह रहे, बुद्धि पे इनकी तरस खाएं या लगाम हीन इनके जुबान पर, या इनकी शर्महींन राजनीति पर ओंछी मानसिकता इनकी देखी बारम्बार, स्काई वॉक चौपाटी ताजा है ,पर ये तो टूच्चाई की पराकाष्ठा है, जो झीरम कांड के सबूत जेब में लिए फिरते थे उन्हीं की जेब में पांच साल सरकार थी फिर भी न सबूत निकला न आरोपी पकड़े गए ,जिन्हें अपने नेताओं का बलिदान याद नहीं रहा ,वों जनता का मतदान क्या याद रखेंगे? याददाश्त की कमजोरी तो नेताओं का गहना है, जिसे वक्त -वक्त पर पहनना उतारना नेताओं की आन बान शान है।
जो हुए बलिदानी उन्होंने इन्हीं नक्सलियों की गोलियां झेली थी, जिन नक्सलियों के लिए आज ये बोलियाँ बोली जा रही, झीरम कांड क्या फर्जी एनकाउंटर से बेहतर था, ये एनकाउंटर फर्जी कैसे हो गया?फिर तो मर्जी झीरम कांड की बहुत संदेहास्पद है, आरोपों के बाद भी सत्ता सुख की मलाई की फिसलन इतना फिसला देगी कि झीरम कांड की स्मृति ही फिसल जाएगी,कल को भूलने की कला काल को आमंत्रित करती है ,अकाल ही भविष्य को ख़राब और वर्तमान को काल कलवित करती है ,चौपाटी के लिए धरना देने वाले बताएं की किनने इन बयानों का विरोध किया,क्यों नही किया? जब चौपाटी के चौपट होने से भावना जागृत हो गई तो फिर ये जागरण बयानों पे क्यों नही हुआ? क्या उनका योगदान ,बलिदान सब विस्मृत हो गया, या उनकी राजनीतिक उपयोगिता नहीं बची क्या अपनों की शहादत पे भी आप राजनीति करेंगे? ऐसे ही क्या आप अपनी स्वीकार्यता बढ़ाएंगे ?झीरम शहीद के परिवारों से कैसे आँख मिलाएंगे ?जन से दूर जन सरोकारों से अंजान अपनों के लिए तिरस्कार क्या यही तीन बातें हैं अब आपकी राजनीति का आधार ?आरोपों से राजनीति कब तक चलेगी एक न एक दिन सबूतों के तेज से झुलसेगी तब क्या करेंगे? बरनाल लिए फिरेंगे ? हार चख लिया है पक्ष -विपक्ष दोनों ने फिर भी हार की चाह में नैतिकता हार रहे,हार के लिए हार नहीं जीत जरुरी है,जितने के लिए सदाचार जरुरी है ,जरूरत को समझिए क्योंकि ----------------------------छत्तीसगढ़ आपकी राजनीति को समझ रहा है शैनै: शैनै:
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी



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