उत्तराखंड के देहरादून में खेती सिमटती जा रही है, लेकिन कई किसान अभी भी इसमें लगे हैं. यहां मटर की खेती किसानों की किस्मत पलट सकती है. मटर नकदी फसल है और देहरादून अपनी अनुकूल जलवायु और उपजाऊ भूमि के चलते कई प्रकार की नकदी फसलों के उत्पादन के लिए जाना जाता है. देहरादून और इसके आसपास के क्षेत्रों, विशेषकर विकासनगर जैसे इलाकों में, किसान सदियों से मटर की खेती करते आ रहे हैं. ये क्षेत्र की प्रमुख नकदी फसल बन चुकी है. यहां मटर की खेती, सही वक्त पर बुआई (खासकर अगेती बुआई), उन्नत किस्मों के प्रयोग और फसल सुरक्षा उपायों के साथ, एक लाभदायक उद्यम है. देहरादून के रेस्टोरेंट-होटलों में मटर की डिमांड रहती है.
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कितनी लागत
देहरादून के किसान नरेंद्र शर्मा बताते हैं कि साल में दो बार देहरादून में मटर उगाई जाती है. एक सितंबर में लगाई जाती है और दूसरी दिसंबर में. इन दिनों अगर किसान मटर की खेती के लिए उन्नत बीज और तकनीक का उपयोग करके विपणन (मार्केटिंग) रणनीति अपनाता है तो उसके लिए एक फायदे का सौदा साबित हो सकती है. आमतौर पर मटर की खेती में एक एकड़ पर लगभग 30,000 से 50,000 रुपए तक का खर्च आता है, जिसमें बुवाई, तुड़ाई, लेबर, मंडी पहुंचाने तक का खर्च शामिल है. एक एकड़ में 80,000 से 1 लाख रुपए या इससे ज्यादा का शुद्ध मुनाफा हो सकता है. कुछ किसान तो एक बीघा में भी 1 लाख रुपए तक की आमदनी कर लेते हैं, ये उनकी खेती के प्रबंधन और बाजार भाव पर निर्भर करता है.
सीधे न बेचें
देहरादून की स्थानीय मंडियों के साथ-साथ यहां की मटर की मांग उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और दूसरे राज्यों में भी रहती है. पहाड़ी मटर की गुणवत्ता और अगेती उपलब्धता के चलते इसकी डिमांड ज्यादा है. व्यापारियों के मुताबिक, यहां से प्रतिदिन 700 से 800 क्विंटल मटर दूसरी मंडियों में भेजी जाती है. एकीकृत कीट प्रबंधन और सही खाद प्रबंधन (जैसे गोबर की खाद, फास्फोरस और पोटाश का उपयोग) से फसल की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार हो सकता है. देहरादून में किसान मटर को सीधे बेचने के बजाय, उसे प्रोसीड करके बेच सकते हैं, जैसे फ्रोजन मटर तैयार करना. इससे उत्पाद का मूल्य और शेल्फ लाइफ (Shelf life) दोनों बढ़ जाते हैं. कुछ किसान अपनी फसल को स्थानीय हाट-बाजारों या खेत से सीधे उपभोक्ताओं को बेचकर बेहतर कीमत हासिल करते हैं.

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