महाराज डॉ इंद्रदेव सरस्वती बोले “शिव महापुराण 18 पुराणों में सर्वोत्तम, शिव भक्तों पर सहज कृपा बरसाते हैं”

महाराज डॉ इंद्रदेव सरस्वती बोले “शिव महापुराण 18 पुराणों में सर्वोत्तम, शिव भक्तों पर सहज कृपा बरसाते हैं”

परमेश्वर राजपूत, गरियाबंद : शिव महापुराण कथा के अवसर पर  विशेष बातचीत में महाराज डॉ इंद्रदेव सरस्वती ने कहा कि शिव महापुराण हमारे 18 पुराणों में सबसे श्रेष्ठ है। शिव जी कल्याणकारी हैं, इसलिए उन्हें ‘शिव’ नाम से जाना जाता है। वह भोले भंडारी हैं, भक्तों पर उनकी कृपा सरलता से प्राप्त होती है। उनके लिए विशेष अनुष्ठान या भारी चढ़ावा जरूरी नहीं। जल, पल्लव, फल–फूल—जो प्रेम से अर्पित हो, वह शिव स्वीकार कर लेते हैं।

“कथा सुनने से सुख मिलता है, आचरण में उतारने से जीवन बदलता है”

महाराज ने कहा कि जिस उत्साह से लोग कथा सुनने आ रहे हैं, समय दे रहे हैं, वही जीवन में उतरना चाहिए। सुनने से सुख मिलता है, लेकिन आचरण में उतारेंगे तो वही सुख स्थायी हो जाएगा। उन्होंने लोगों को व्यसनमुक्त रहने और परिवार को प्राथमिकता देने की सलाह दी।

यहां की भीड़ अद्भुत है, ऐसा उत्साह कम जगह दिखता है

महाराज जी ने बताया कि कथाओं में भीड़ तो कई जगह होती है, लेकिन यहाँ जो श्रद्धा और अनुशासन के साथ भीड़ जुट रही है, वह दुर्लभ और प्रेरक है।

“शिव महापुराण सरल नहीं, अध्ययन पर आधारित कथा है”

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि “शिव महापुराण की कथा कम होती है, क्योंकि यह अध्ययन पर आधारित है। पिछले दो वर्षों में शिव भक्ति तेजी से बढ़ी है, लोगों का भाव गहरा हुआ है। लेकिन शिव कथा कहना आसान नहींयह सिर्फ नोट्स से नहीं होती है। उन्होंने भागवत कथा की तुलना करते हुए कहा कि भागवत में सात दिन के नोट्स से भी कई लोग कथा कह लेते हैं। लेकिन शिव, देवी, गणेश पुराण—ये गहन अध्ययन मांगते हैं। अध्ययन करने वाले वक्ता कम हैं, इसलिए शिव कथा भी कम होती है।

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युवाओं को चेतावनी—“परंपरा क्षीण हुई तो जवानी नहीं बचेगी

युवाओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि युवा जीवन बढ़ने का समय है। शरीर और बुद्धि बदलती है, समाज में उनकी भूमिका बदलती है। माता–पिता भी उन्हें बराबर का मानते हैं। ऐसे समय में संस्कृति और परंपरा ही उन्हें संभाल सकती है। परंपरा कमजोर होगी तो जीवन कमजोर हो जाएगा। उन्होंने गणेश जी के उदाहरण से समझाया कि गणेश जी का सिर अलग हुआ, पर शरीर वहीं था। मस्तिष्क ही पहचान है। इसी तरह हमारी परंपरा, संस्कृति और संस्कार हमारे ‘माथे’ में होने चाहिए। यही हमारी दिशा तय करते हैं।

“धर्म व्यवसाय का केंद्र नहीं बनना चाहिए”

वर्तमान धार्मिक परिवेश पर महाराज ने कहा कि देश में धर्म को व्यवसाय का केंद्र नहीं बनना चाहिए। देश में धार्मिक परिवर्तन हो रहे हैं, यह अच्छी बात है, लेकिन यह परिवर्तन स्थायी हों, ऐसा प्रयास जरूरी है, नहीं तो स्थिति फिर बदल सकती है।

धर्मांतरण पर चिंता, संतुलन जरूरी 

धर्मांतरण को लेकर उन्होंने गंभीर चिंता जताई। महाराज जी ने कहा हम आर्य वंशज हैं और वैदिक सिद्धांत पर आगे बढ़ते आए हैं। लेकिन आज जनसंख्या का संतुलन बदल रहा है। कुछ वर्गों की संख्या घट रही है, कुछ की तेजी से बढ़ रही है। अगर यही स्थिति रही, तो भविष्य में कोई एक वर्ग हावी भी हो सकता है।







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