नगरी : उड़ीसा–छत्तीसगढ़ की सीमा जहाँ रातें सिर्फ अंधेरी नहीं होती, बल्कि कहानियाँ जन्म लेती हैं और इन्हीं कहानियों की सबसे रहस्यमयी कड़ी रही “तीसरी परछाई”। पिछले दो साल से सक्रिय, धमतरी से कड़कड़ाती ठंड में निकलकर रातभर “पहरा” देने वाला — और उसी बहाने खूब उगाही करने का खेल खेलने वाली। लेकिन!इस बार हालात बदल गए…कहानी पलट गई…
और परछाई का कारोबार चौपट हो गया।
तीसरी परछाई का खेल बिगड़ा—अब कैमरा नहीं, कार्रवाई बोल रही है!
इस सीज़न में दो परछाइयों की मुस्तैदी और जिला प्रशासन की “तीसरी आँख” की 24 घंटे की निगरानी ने वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद नहीं थी…
बॉर्डर पर धान का काला खेल लगभग ठप!कैमरे से नहीं— कानूनी कार्रवाई से डर पैदा हुआ।नींद उड़ गई, चैन उड़ा…और तीसरी परछाई की रातें अब चौकसी में नहीं, चिंता में बीत रही हैं।
पिछले दो साल की उगाही—सर्द रातों में गर्म कमाई!
ग्रामीणों की मानें तो तीसरी परछाई ने पिछले दो सालों में ठंड से नहीं,कैमरे और डर के खेल से कमाई की आग तेज़ रखी। रात 1 बजे, 2 बजे—कोहरे और धुएँ में ढँका बॉर्डर
कभी उसकी चौकसी का मैदान था और कभी वसूली का लेकिन इस बार हालात बदलेऔर बदले भी इतने कि कैमरा ऑन करने का हौसला तक नहीं बचा!
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दो परछाइयों की ताबड़तोड़ निगरानी—प्रशासन जागा
जहाँ तीसरी परछाई सिर्फ “खेल” खेल रही थी,वहीं दो परछाइयाँ वाकई में सीमा पर नज़र बनाए हुए थीं। इनकी रिपोर्टिंग और डिजिटल चौकसी के आधार पर
जिला प्रशासन ने फुल एक्शन मोड में आकर
💥 54 प्रकरण दर्ज किए
💥 3296 क्विंटल अवैध धान जप्त किया
💥 बॉर्डर को चौकसी का किला बना दिया
तीसरी परछाई के लिए इससे बड़ा झटका कोई और नहीं हो सकता था।
धमतरी का ‘खबरीलाल’—जो बनना चाहता था तीसरी परछाई!
धमतरी का एक “खबरीलाल” जो बॉर्डर पर कभी युवा नेता को साथ लेकर पहुँचता,
कभी किसी साधारण आदमी को “पत्रकार” बनाकर सीमा तक घसीटता, कभी स्थानीय रिपोर्टरों की आड़ लेकर बॉर्डर के खेल में हिस्सा लेता। लेकिन इस बार
सेटिंग टूटी… सिस्टम जागा… और खबरीलाल का खेल खुलकर सामने आ गया। अब वही खबरीलाल RTI लेकर घूम रहा है, शिकायतों की जुगाली कर रहा है, क्योंकि उसके हाथों की उगाही की माला टूट चुकी है।
बॉर्डर पर अब नहीं चलेगा कोई अदृश्य खेल
प्रशासन की निगरानी, दो परछाइयों की फील्ड रिपोर्टिंग और ग्रामीणों की सजगता—
इस बार मिलकर एक चीज़ साफ कर गई है बॉर्डर का काला धंधा बंद है!
और तीसरी परछाई की बादशाहत खत्म। अब न कैमरा चल रहा,न दबाव बन रहा,
न गाड़ियाँ बिना वजह रुक रहीं… और सबसे बड़ी बात—अब बॉर्डर मौन नहीं है, जागरूक है।तीसरी परछाई ने दो साल तक बॉर्डर को अंधेरे में रखा…
लेकिन इस बार दो परछाइयों की रोशनी और प्रशासन की तीसरी आँख ने
उसके “खेल” को वहीं दफ़्न कर दिया जहाँ से वह शुरू हुआ था।

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