छतरपुर जिले में सर्दी के मौसम में दुधारू पशुओं को ठंड से बचाने के लिए पशुपालक अपने जानवरों को एक ऐसा चारा भी खिलाते हैं जिससे उन्हें ठंड नहीं लगती है. साथ ही इस चारे से पशुओं का दूध भी बढ़ता है. दरअसल, ठंड के सीजन में खेतों में एक ऐसा खरपतवार उगता है जिसे बथुआ कहा जाता है.
किसान रमाकांत दीक्षित बताते हैं कि ठंड के समय खेतों में अपने आप एक ऐसा खरपतवार उगता है जो किसानों के लिए फायदेमंद होता है. हालांकि इसे उखाड़ना होता है नहीं तो यह खेत में लगी फसल को चौपट कर देता है. अगर इसे उखाड़ा जाए तो यह किसानों के काम भी आता है लेकिन अगर इसको उखाड़ते नहीं है तो खेत में लगी फसल को बर्बाद कर देता है. क्योंकि इसकी वजह से फसल में वृद्धि नहीं हो पाती है.
किसान रमाकांत बताते हैं कि जब खेतों में पानी लगाया जाता है या खेतों में बहुत शीत होता है तो ये खरपतवार अपने आप ही उग आता है. इस खरपतवार का बीज जिस खेत में होता है उस खेत से आसानी से नहीं जाता है. खेत से कितना भी ये उखाड़ा जाए या काटा जाए, लेकिन इसका बीज आसानी से नहीं जाता है.
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किसान बताते हैं कि इस खरपतवार को चारे के तौर पर पशुओं को खिलाया जाता है इसे खेत से काटकर सीधे पशुओं को खिला सकते हैं या फिर से भूसा के साथ में मिलाकर भी खिलाते हैं.
पशुओं का बढ़ता है दूध
किसान बताते हैं कि इस चारे को खिलाने से पशुओं का दूध भी बढ़ता है. इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है. यह पशुओं के दूध उत्पादन में बढ़ोत्तरी करता है. अगर आप इसे ठंडे पर खिलाते हैं तो निश्चित तौर पर पशुओं का दूध बढ़ता है.
पशुओं को सर्दी से बचाता है
किसान बताते हैं कि यह खरपतवार पशुओं को फायदा भी करता है. क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है और सर्दी के मौसम में गाय-भैंसों को ठंड से बचाने के लिए ये चारा औषधि का काम करता है.
दिन में इतना खिला सकते हैं
किसान बताते हैं कि इस बथुआ चारे को दिन में आप तीन से चार बार पशुओं को खिला सकते हैं हालांकि ज्यादा नहीं खिलाना है. एक पशु के लिए एक बोरी पर्याप्त है. किसान बताते हैं कि जिन पशुओं की ब्यात होनी है ऐसे पशुओं को यह कम खिलाएं. क्योंकि यह गर्म होता है.
बथुआ के पराठे भी बनते हैं
किसान बताते हैं कि छतरपुर जिले में बथुआ के पराठे भी सर्दी के मौसम में बनाए जाते है. सर्दी के मौसम में लोग इन पराठों को खाना पसंद करते हैं. हालांकि इसे 12 महीने नहीं खाते हैं. बथुआ के सिर्फ पराठे नहीं बनाए जाते हैं, बल्कि इसकी सूखी सब्जी बनाई जाती है. जैसे मेथी और पालक की आलू के साथ सूखी सब्जी बनाई जाती है वैसे ही बथुआ की सब्जी भी आलू के साथ में खाई जाती है.

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