हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है। यह दिन कई मायनों में बेहद खास होता है । क्रिसमस आने से पहले ही हर तरफ इसकी रौनक देखने को मिलती है। इस दौरान हर तरफ सांता क्लॉस की टोपी और कपड़े नजर आते हैं, जिसका रंग सिर्फ लाल और सफेद होता है।
आलम यह है कि अब क्रिसमस की पहचान ही यह लाल और सफेद रंग बन चुका है, क्योंकि सांटा क्लॉज लाल और सफेद रंग के कपड़े (Santa Claus Red and White Clothes) पहनते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर सांटा क्लॉज हमेशा लाल और सफेद रंग के कपड़े ही क्यों पहनते हैं? रंग तो और भी बहुत हैं, तो फिर इन्हीं दो रंगों को क्यों चुना गया? अगर आपको भी इस दिलचस्प सवाल का जवाब नहीं पता, तो आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी।
ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी -पक्ष -विपक्ष मस्त,छत्तीसगढ़िया पस्त है
हमेशा नहीं था लाल लिबास
दिलचस्प बात यह है कि सांता क्लॉज हमेशा से लाल रंग नहीं पहनते थे। पहले के यूरोपीय चित्रणों में, सेंट निकोलस को अक्सर हरे, नीले या भूरे रंग के बिशप के कपड़ों में दिखाया जाता था। 19वीं शताब्दी तक, सांता के कपड़ों का रंग अलग-अलग संस्कृतियों में अलग-अलग था।
कोका-कोला का योगदान
सांता के लाल-सफेद कपड़ों को लेकर एक मशहूर धारणा है कि सांता का लाल-सफेद रंग कोका-कोला कंपनी की 1930 के दशक के ऐड कैंपेन की देन है। हालांकि, यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। कोका-कोला के कलाकार हैडन सन्डब्लॉम ने सांता के आधुनिक रूप को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन लाल रंग पहले से ही सांता से जुड़ा हुआ था। कोका-कोला ने इस छवि को और मजबूत किया तथा दुनिया भर में फैलाया।
प्रतीकात्मक महत्व
लाल और सफेद रंगों का गहरा प्रतीकात्मक महत्व है-
ये रंग क्रिसमस के पारंपरिक रंगों लाल और हरे से भी मेल खाते हैं।
सांस्कृतिक एकरूपता
20वीं शताब्दी में, मीडिया और ग्लोबलाइजेशन के जरिए सांता की इस छवि ने दुनिया भर में स्वीकार किया गया। इससे दुनियाभर में सांता क्लॉज की एक जैसी छवि बन गई।
अब आप जान गए होंगे कि सांता क्लॉज का लाल-सफेद लिबास केवल एक फैशन नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और एक ऐड कैंपेन से जुड़ा है।इसलिए, जब भी आप लाल-सफेद कपड़ों में सांता को देखते हैं, तो याद रखें कि इन रंगों के पीछे सदियों की परंपरा और सांस्कृतिक विकास की कहानी है।

Comments