पड़ोसी देश बांग्लादेश आर्थिक दबाव और विदेशी कर्ज के बोझ से जूझ रहा है. इसी बीच भारत का नाम बार-बार सामने आता है, जिसने विकास के नाम पर अरबों डॉलर की मदद दी. सवाल यह नहीं कि भारत ने कितना कर्ज दिया, सवाल यह है कि क्या यह रकम सुरक्षित है और अगर हालात बिगड़ते हैं तो इसकी वसूली कैसे होगी. दोस्ती, रणनीति और पैसा- तीनों का संतुलन अब बड़ी परीक्षा में है.
भारत-बांग्लादेश आर्थिक रिश्तों की पृष्ठभूमि
भारत और बांग्लादेश के संबंध सिर्फ कूटनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आर्थिक सहयोग इन रिश्तों की रीढ़ रहा है. बीते एक दशक में भारत ने बांग्लादेश को इंफ्रास्ट्रक्चर, रेलवे, सड़क, ऊर्जा और रक्षा क्षेत्रों के लिए बड़े पैमाने पर कर्ज मुहैया कराया है. यह मदद लाइन ऑफ क्रेडिट यानी एलओसी के जरिए दी गई, जिसका मकसद बांग्लादेश की विकास परियोजनाओं को गति देना और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी मजबूत करना था.
भारत ने अब तक कितना कर्ज दिया
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत बांग्लादेश को करीब 8 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का कर्ज दे चुका है. इसमें अलग-अलग चरणों में दी गई एलओसी शामिल हैं. साल 2010 के बाद से भारत ने रेलवे आधुनिकीकरण, बंदरगाह विकास, सड़क परियोजनाओं और बिजली ट्रांसमिशन जैसी योजनाओं के लिए यह फंड उपलब्ध कराया. इसके अलावा रक्षा सहयोग के तहत भी एक विशेष लाइन ऑफ क्रेडिट दी गई, जिससे बांग्लादेश अपनी सैन्य जरूरतों को पूरा कर सके.
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कर्ज की शर्तें कितनी सख्त हैं
भारत का यह कर्ज वाणिज्यिक बैंकों के मुकाबले काफी नरम शर्तों पर दिया गया है. ब्याज दर कम रखी गई है और भुगतान के लिए लंबी अवधि तय की गई है, ताकि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर अचानक दबाव न पड़े. यही वजह है कि इस कर्ज को अक्सर 'दोस्ती वाला कर्ज' कहा जाता है, न कि मुनाफे पर केंद्रित वित्तीय सौदा.
बांग्लादेश की मौजूदा आर्थिक स्थिति
हाल के वर्षों में बांग्लादेश को विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, आयात दबाव और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महंगाई और डॉलर की मजबूती ने उसकी मुश्किलें बढ़ाई हैं. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या बांग्लादेश समय पर भारत का कर्ज चुका पाएगा.
कर्ज की वसूली कैसे हो सकती है
भारत के लिए यह कर्ज सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि रणनीतिक निवेश है. वसूली का पहला रास्ता तयशुदा पुनर्भुगतान शेड्यूल है, जिसके तहत बांग्लादेश को किस्तों में रकम चुकानी होती है. दूसरा रास्ता उन परियोजनाओं से मिलने वाली आय है, जिनके लिए यह कर्ज दिया गया. रेलवे और ऊर्जा प्रोजेक्ट्स से होने वाली कमाई का इस्तेमाल कर्ज चुकाने में किया जा सकता है. तीसरा अहम पहलू कूटनीतिक है, जहां जरूरत पड़ने पर भुगतान की समयसीमा बढ़ाई जा सकती है.
