किरंदुल में प्रस्तावित विस्तार पर तस्वीर साफ, जनसुनवाई से पहले सामने आए तथ्य

किरंदुल में प्रस्तावित विस्तार पर तस्वीर साफ, जनसुनवाई से पहले सामने आए तथ्य

किरन्दुल :किरंदुल क्षेत्र में प्रस्तावित औद्योगिक गतिविधियों को लेकर बीते कुछ हफ्तों से स्थानीय स्तर पर कई तरह की अटकलें और सवाल उठते रहे हैं। खासकर परियोजना के दायरे, जल संसाधनों और भूमि उपयोग को लेकर भ्रम की स्थिति देखी गई। इन्हीं बिंदुओं पर पड़ताल करने पर सामने आया है कि चर्चा में रही गतिविधि वास्तव में एक सीमित और तकनीकी प्रकृति का विस्तार है।उपलब्ध दस्तावेज़ों और प्रशासनिक रिकॉर्ड के अनुसार, किरंदुल में संचालित बेनिफिसिएशन प्लांट की मौजूदा उत्पादन क्षमता 8 मिलियन टन प्रति वर्ष है, जिसे आधुनिक तकनीक और सहायक सुविधाओं के माध्यम से 12 मिलियन टन प्रति वर्ष तक बढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया है। यह विस्तार पूरी तरह वर्तमान औद्योगिक परिसर के भीतर ही किया जाएगा।

न भूमि विस्तार, न नए जल स्रोत
पड़ताल में यह भी स्पष्ट हुआ है कि इस क्षमता वृद्धि के लिए किसी अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता नहीं दर्शाई गई है। संयंत्र के मौजूदा क्षेत्रफल के भीतर ही सभी नई संरचनाएं और सहायक इकाइयां स्थापित की जाएंगी।इसी तरह जल उपयोग को लेकर उठ रही शंकाओं पर भी स्थिति साफ होती नजर आ रही है। परियोजना से जुड़े विवरण बताते हैं कि साबरी नदी से जल उपयोग की मात्रा पूर्व में स्वीकृत सीमा के अनुसार ही रहेगी। प्रस्ताव में जल दोहन बढ़ाने का कोई नया प्रावधान शामिल नहीं है।

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30 दिसंबर को होगा सार्वजनिक विमर्श
परियोजना से जुड़ी पर्यावरणीय प्रक्रिया के तहत 30 दिसंबर को किरंदुल में जनसुनवाई आयोजित की जाएगी। यह सुनवाई बी.आई.ओ.पी. सीनियर सेकेंडरी स्कूल परिसर में सुबह 11 बजे होगी, जिसमें आसपास के गांवों और शहरी क्षेत्र के लोग हिस्सा ले सकेंगे।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत होने वाली इस सुनवाई में प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मौजूदगी में स्थानीय नागरिक अपनी सुझाव और सवाल रख सकेंगे। यह प्रक्रिया औद्योगिक विकास से जुड़े निर्णयों में सार्वजनिक भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की जा रही है।

अफवाहों के बजाय दस्तावेज़ों पर आधारित समझ
कुल मिलाकर, अब तक सामने आई जानकारी यह संकेत देती है कि किरंदुल में प्रस्तावित गतिविधि किसी नए औद्योगिक प्रोजेक्ट की बजाय मौजूदा संयंत्र के तकनीकी विस्तार से जुड़ी है। शुरुआती भ्रम मुख्यतः अपूर्ण सूचनाओं और कयासों के कारण बना, जिसे अब आधिकारिक रिकॉर्ड और प्रक्रिया के जरिए समझा जा सकता है।







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