मुंबई : बृहन्मुंबई महानगर पालिका चुनावों से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में नए समीकरण उभर रहे हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में विभाजन के बाद अब संभावित एकता की चर्चा गर्म है। NCP (शरद पवार) की सांसद सुप्रिया सुले ने अपने भाई अजित पवार की NCP के साथ गठबंधन की संभावना पर खुलकर बात की है। उन्होंने कहा कि अजित पवार ने अपनी विचारधारा नहीं छोड़ी है और गठबंधन को लेकर उनसे बातचीत जारी है, हालांकि अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है। सुप्रिया सुले का यह बयान ऐसे समय आया है जब भाजपा (BJP) पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ नगर निगम चुनावों में जीत के बाद उत्साहित है।
मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के होनेवाले चुनाव में कांग्रेस ने शिवसेना(यूबीटी) से पल्ला झाड़ लिया है। क्योंकि उसे भरोसा है कि अकेले लड़ने पर मुंबई के दलित, मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के मतदाता उसका साथ देंगे। कांग्रेस अपने नेता मुरली देवड़ा के नेतृत्व में आखिरी बार 1992 में बीएमसी का चुनाव जीती थी। तब आरपीआई (आठवले) के साथ उसका गठबंधन था।
दूसरी ओर शिवसेना और भाजपा अलग-अलग लड़ी थीं। लेकिन इस चुनाव में सत्ता पाकर भी कांग्रेस पूरे पांच साल राज नहीं कर सकी। कार्यकाल पूरा होने से पहले ही कांग्रेस में तोड़-फोड़कर शिवसेना का महापौर बन गया था। उसके बाद 1997 से तो लगातार शिवसेना की ही सत्ता चली आ रही है। लेकिन इस बार कांग्रेस अधिक मजबूत न होने के बावजूद शिवसेना को छोड़कर अकेले ताल ठोकने और चुनाव में तीसरा कोण बनने निकल पड़ी है।
ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी -पक्ष -विपक्ष मस्त,छत्तीसगढ़िया पस्त है
इसका एक कारण पिछले लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में शिवसेना के साथ गठबंधन करके उसका घाटे में रहना भी रहा। 2024 के लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) ने सीट बंटवारे के समय कांग्रेस को इतना दबाया कि कांग्रेस का रहा-सहा जनाधार भी जाता रहा।
लोकसभा में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिलीं। उसमें भी उत्तर मुंबई की एक सीट ऐसी मिली, जहां पहले से एकतरफा जीत भाजपा की मानी जा रही थी। बड़ी मुश्किल से उत्तर-मध्य मुंबई की सिर्फ एक सीट कांग्रेस की मुंबई अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ जीत सकीं। विधानसभा चुनाव में भी शिवसेना का रवैया कांग्रेस को दबाने वाला ही रहा।
मुंबई कांग्रेस के महासचिव जाकिर अहमद कहते हैं कि देश भर का दलित-वंचित-अल्पसंख्यक इस समय भाजपा के मुकाबले सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी को खड़ा पा रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने की हिम्मत जुटा पा रही है। जाकिर अहमद कहते हैं कि ये सही है कि मुस्लिम इसलिए भी उद्धव ठाकरे के साथ गए, क्योंकि वह भाजपा को सीधी टक्कर दे रहे थे, लेकिन राहुल गांधी की कांग्रेस का उनकी पार्टी से गठबंधन होना भी इसका एक बड़ा कारण था।
अब जबकि कांग्रेस ने अलग लड़ने का फैसला कर लिया है, तो उसका पुराना दलित-वंचित-अल्पसंख्यक मतदाता वर्ग फिर उसके साथ ही खड़ा रहेगा। जाकिर अहमद कहते हैं कि 2017 के चुनाव में कांग्रेस 31 सीटें जीती थी, और करीब 20 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी। इस बार की त्रिकोणीय लड़ाई में भी वह कम से कम 100 सीटों पर पूरी मजबूती से चुनाव लड़ेगी।
बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मुंबई में सिर्फ तीन सीटें जीत सकी थी। उनमें से दो विधायक मुस्लिम एवं एक दलित वर्ग से है। इसी प्रकार लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस द्वारा जीती गई एकमात्र सीट मुंबई कांग्रेस की दलित अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ की है। दलित-वंचित मतों के लिए ही कांग्रेस वंचित बहुजन आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर से गठबंधन का प्रयास कर रही है। उसे उम्मीद है कि यदि उसके दलित-मुस्लिम-वंचित समीकरण के साथ कुछ उत्तर भारतीय मतदाता भी जुड़ जाएं तो वह सम्मानजनक सीटें निकाल ले जाएगी।

Comments