नई दिल्ली: आज के दौर में हम जब मर्जी तब शैम्पू कर लेते हैं। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी दादी-नानी कुछ खास दिनों पर बाल धोने से क्यों रोकती थीं? जिसे हम आज महज एक पुराना 'अंधविश्वास' मानकर टाल देते हैं। दरअसल वह दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं का एक गहरा विज्ञान था।
मिस्र से लेकर भारत तक, पुराने समय में बाल धोने को केवल सफाई नहीं, बल्कि एक 'आध्यात्मिक प्रक्रिया' माना जाता था। आइए जानते हैं कि क्यों हमारे पूर्वजों ने बाल धोने के लिए इतने सख्त और रहस्यमयी नियम बनाए थे।
1. बालों को माना जाता था 'ऊर्जा का एंटेना'
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, इंसान के बाल केवल सुंदरता के लिए नहीं थे, बल्कि वे ब्रह्मांडीय ऊर्जा (Cosmic Energy) को सोखने वाले एंटेना की तरह काम करते थे। माना जाता था कि हमारी यादें और संस्कार बालों में संग्रहित होते हैं। इसलिए, बार-बार बाल धोना अपनी मानसिक शक्ति और याददाश्त को कमजोर करने के समान माना जाता था।
2. शारीरिक तापमान का गणित
प्राचीन चिकित्सा पद्धति के अनुसार, सिर शरीर का सबसे संवेदनशील हिस्सा है। बाल धोने से सिर का तापमान अचानक गिर जाता था, जिससे शरीर की 'अग्नि' मंद पड़ सकती थी। इसी कारण शाम के वक्त या अस्वस्थ होने पर बाल धोना वर्जित था, ताकि शरीर के रोगों से लड़ने की क्षमता बनी रहे।
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3. ग्रहों के साथ तालमेल
इतिहास बताता है कि पुराने लोग समय के बहुत पाबंद थे। सप्ताह के दिन ग्रहों के प्रभाव से जुड़े थे। जैसे कुछ खास दिनों पर बाल धोने से घर की आर्थिक स्थिति या बुद्धि पर असर पड़ने की बात कही जाती थी। यह नियम प्रकृति और मनुष्य के बीच एक संतुलन बनाए रखने के लिए थे।
4. अनुष्ठान और पवित्रता
किसी भी बड़े उत्सव या मंदिर जाने से पहले 'शुद्धिकरण' के लिए सिर धोना जरूरी था। लेकिन, एक बार जब कोई पवित्र अनुष्ठान पूरा हो जाता। तो कई दिनों तक बाल नहीं धोए जाते थे ताकि उस पूजा या संस्कार से मिली सकारात्मक ऊर्जा शरीर में ही बनी रहे।
आज का विज्ञान भले ही इसे अलग नजरिए से देखे, लेकिन प्राचीन संस्कृतियों के ये नियम हमें सिखाते हैं कि हमारे शरीर का छोटा सा हिस्सा भी प्रकृति की ऊर्जा से जुड़ा हुआ है। बाल धोना सिर्फ धूल मिटाना नहीं, बल्कि खुद को ऊर्जावान बनाए रखने का एक तरीका था।

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