पचास साल बाद बदली खेती की तस्वीर,अरकार के किसानों ने पानी बचाने को बदली फसल

पचास साल बाद बदली खेती की तस्वीर,अरकार के किसानों ने पानी बचाने को बदली फसल

बालोद : बालोद जिले के गुरूर विकासखण्ड का ग्राम अरकार अब ग्रीष्मकालीन धान के लिए नहीं, बल्कि जल संरक्षण और वैकल्पिक खेती के सफल प्रयोग के लिए जाना जा रहा है। जिन खेतों में पिछले करीब 50 वर्षों से गर्मी के दिनों में धान की फसल ली जाती थी, वहां अब मक्का, चना, सरसों, कुसुम, गेहूं और साग-सब्जियां लहलहा रही हैं। यह बदलाव सिर्फ फसल का नहीं, बल्कि पानी बचाने और भविष्य की खेती को सुरक्षित करने की सोच का प्रतीक बन गया है।

कृषि विभाग के अनुसार ग्राम अरकार का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 918.71 हेक्टेयर है, जिसमें से लगभग 698.38 हेक्टेयर भूमि पर खेती होती है। लंबे समय से ग्रीष्मकालीन धान के कारण भू-जल का अत्यधिक दोहन हो रहा था। इसका परिणाम यह हुआ कि गुरूर विकासखण्ड ‘क्रिटिकल जोन’ में पहुंच गया और हर साल गर्मी में पेयजल संकट गहराने लगा।

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इसी स्थिति को देखते हुए जिला प्रशासन और कृषि विभाग ने किसानों के साथ मिलकर फसल चक्र परिवर्तन पर जोर दिया। वर्ष 2024 में जहां केवल 25 हेक्टेयर क्षेत्र में दलहन-तिलहन की खेती हुई थी, वहीं वर्ष 2025 में 16 किसानों ने 60 हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन धान के बदले गेहूं, चना, बटरी, कुसुम, सरसों, धनिया और साग-सब्जियों की खेती शुरू की। एक साल में ही 35 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में यह बदलाव दर्ज किया गया।

किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए गांव में कृषक चौपालों का आयोजन किया गया, जहां जल संरक्षण और कम पानी वाली फसलों के लाभ बताए गए। साथ ही कृषि विभाग द्वारा बीज वितरण कर शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं से भी जोड़ा गया। दलहन-तिलहन फसलों की बिक्री के लिए प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) अंतर्गत प्राइस सपोर्ट स्कीम के तहत जिले में 18 उपार्जन केंद्र तय किए गए हैं, जहां न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी की सुविधा है। अरकार के किसानों की यह पहल अब पूरे क्षेत्र के लिए उदाहरण बन रही है, जहां पानी की बचत के साथ खेती को टिकाऊ और लाभकारी बनाने की दिशा में मजबूत कदम उठाए जा रहे हैं।







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