नई दिल्ली : आज दिल्ली का विज्ञान भवन एक 10 साल के मासूम के जज्बे का गवाह बना. जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने फिरोजपुर के श्रवण सिंह को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार सौंपा. श्रवण के गले में पदक देख सबकी आंखें नम थीं. भारत-पाक सीमा पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस नन्हे जांबाज ने गजब का साहस दिखाया. सीमावर्ती गांव चक तरां वाली का यह बच्चा आज देश के लिए मिसाल बन चुका है. अपनी छोटी सी उम्र में उसने वह कर दिखाया जो बड़ों के लिए भी कठिन है. मई की तेज गर्मी और सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच श्रवण का हौसला कभी डगमगाया नहीं.
कैसे की ऑपरेशन सिंदूर में मदद?
पुरस्कार मिलने के बाद श्रवण ने बड़े ही मासूम और गर्व भरे लहजे में अपना अनुभव साझा किया. उसने कहा, ‘मैं फिरोजपुर से हूं. जब ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ तो हमारे गांव में फौजी आए थे. वे देश की रक्षा करने के लिए आए थे. मैंने सोचा चलो उनकी मदद करते हैं. मैं उनके लिए दूध, चाय, लस्सी, बर्फ लेकर जाता था. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि मुझे अवॉर्ड मिल रहा है. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे यह सम्मान मिलेगा.’ श्रवण की इन बातों ने वहां मौजूद हर शख्स का दिल जीत लिया.
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सेना में अफसर बनना चाहता है श्रवण
श्रवण सिंह फिलहाल ममदोट के सरकारी स्कूल में पांचवीं कक्षा का छात्र है. जब सीमा पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चुनौतियां बढ़ीं तो श्रवण सैनिकों के लिए सहारा बना. वह रोजाना पानी, दूध और लस्सी जैसी सामग्री सीमावर्ती चौकियों तक पहुंचाता था. इतनी कम उम्र में उसकी यह निस्वार्थ सेवा सैनिकों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं थी. श्रवण के पिता सोना सिंह को अपने बेटे की इस बहादुरी पर बेहद गर्व है. पिता के मुताबिक श्रवण बचपन से ही सेना के जवानों को अपना हीरो मानता है.
सेना उठाएगी पढ़ाई का खर्च
भारतीय सेना की गोल्डन ऐरो डिवीजन ने श्रवण की वीरता को पहले ही पहचाना था. सेना ने उसे सबसे छोटा नागरिक योद्धा घोषित कर सम्मानित किया था. जवानों के प्रति उसके लगाव को देखते हुए सेना ने उसकी शिक्षा का खर्च उठाया है. ताकि सीमा का यह रक्षक भविष्य में अपनी पढ़ाई बिना किसी बाधा के पूरी कर सके. श्रवण का एकमात्र सपना बड़ा होकर भारतीय सेना की वर्दी पहनना और देश सेवा करना है. आज का यह सम्मान उसके उसी महान लक्ष्य की ओर पहला बड़ा कदम है.
देश के लिए प्रेरणा बना श्रवण
श्रवण की कहानी यह सिखाती है कि देशभक्ति के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती. उसने दिखा दिया कि एक छोटा सा योगदान भी सेना का मनोबल बढ़ा सकता है. फिरोजपुर के इस छोटे से गांव से निकला यह बच्चा आज पूरे भारत की प्रेरणा है. आज राष्ट्रपति ने श्रवण सहित देश के 20 असाधारण बच्चों को इस सम्मान से नवाजा है. यह पुरस्कार बच्चों को उनकी नागरिक बहादुरी और असाधारण सेवा के लिए दिए जाते हैं. श्रवण का नाम अब इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो चुका है.

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