साल 2026 में कब मनाई जाएगी रथ सप्तमी? जानें शुभ मुहूर्त एवं योग

साल 2026 में कब मनाई जाएगी रथ सप्तमी? जानें शुभ मुहूर्त एवं योग

हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सूर्य देव को समर्पित होता है। इस दिन रथ सप्तमी मनाई जाती है। इसे माघ सप्तमी या भानु सप्तमी भी कहा जाता है। इस दिन आत्मा के कारक सूर्य देव की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही अपनी आर्थिक स्थिति अनुसार दान-पुण्य किया जाता है।

ज्योतिषियों का मत है कि कुंडली में सूर्य मजबूत होने या सूर्य की कृपा बरसने से जातक को करियर में मनमुताबिक सफलता मिलती है। साथ ही आरोग्यता का वरदान मिलता है। अतः साधक प्रतिदिन सूर्य देव को जल का अर्घ्य देते हैं। वहीं, रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव की विशेष पूजा करते हैं। आइए, रथ सप्तमी की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि जानते हैं-

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रथ सप्तमी शुभ मुहूर्त 
वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 25 जनवरी (24 जनवरी की रात) 12 बजकर 39 मिनट से शुरू होगी और 25 जनवरी को देर रात 11 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। अतः 25 जनवरी को रथ सप्तमी मनाई जाएगी। रथ सप्तमी के दिन स्नान करने का सही समय सुबह 05 बजकर 26 मिनट से लेकर 07 बजकर 13 मिनट तक है। इस दौरान सूर्य देव की पूजा उपासना कर सकते हैं।

रथ सप्तमी शुभ योग 
ज्योतिषियों की मानें तो रथ सप्तमी तिथि पर सिद्ध और साध्य योग का निर्माण हो रहा है। साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का भी संयोग है। इन योग में स्नान-ध्यान और सूर्य देव की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होगी।

पूजा विधि 
माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि यानी 25 जनवरी को सूर्योदय से पहले उठें। इस समय सूर्य देव का ध्यान और प्रणाम करें। इसके बाद घर की साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़ककर घर को शुद्ध करें। दैनिक कार्यों से निवृत्त (समाप्त करने) होने के बाद स्नान करें। सुविधा होने पर गंगा स्नान कर सकते हैं।

अब आचमन कर पीले रंग के कपड़े पहनें और सूर्य देव को जल अर्पित करें। सूर्य देव को जल देते समय निम्न मंत्रों का जप करें।

'ऊँ घृणि सूर्याय नम:'
"ऊँ सूर्याय नम:"
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।
इसके बाद विधि विधान से सूर्य देव की पूजा करें। पूजा के समय सूर्य चालीसा का पाठ करें। पूजा का समापन आरती से करें। वहीं, पूजा के बाद बहती जलधारा में काले तिल प्रवाहित करें और आर्थिक स्थिति अनुसार दान दें।







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