बांग्लादेश उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. शेख हसीना सरकार की तख्तापलट के बाद शुरू हुआ हिंसा का दौर अभी तक जारी है. इस आग में अल्पसंख्यक हिन्दुओं को तो जलना पड़ ही रहा है, अब वहां के हर वर्ग तक इसकी तपिश पहुंच चुकी है.
युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या कर दी गई. हिन्दु युवकों को सरेआम लिंच किया जा रहा है. बांग्लादेश में 21वीं सदी में जो माहौल है, उसकी भविष्यवाणी 20वीं सदी में ही कर दी गई थी. पड़ोसी देश की स्थिति के बारे में भविष्यवाणी करने वाले कोई और नहीं, बल्कि वे थे रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) के संस्थापक और पहले चीफ आरएन काव. उन्होंने जून 1972 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ को चिट्ठी लिखकर पाकिस्ता और बांग्लादेश में अमेरिकी दखल और उसकी रणनीति के बारे में स्पष्ट तौर पर संकेत दे दिया था. आरएन काव की भविष्यवाणी आधी सदी के बाद अब सच हो रही है. बांग्लादेश उसी दौर से गुजर रहा है, जिसके बारे में R&AW के संस्थापक और दुनिया के जानेमाने स्पाई आरएन काव ने भविष्यवाणी की थी.
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आरएन काव ने सैम मानेकशॉ को जून 1972 में चिट्ठी लिखकर बताया था, 'अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान जितना संभव हो सके उतना मजबूत बना रहे, ताकि वह भारत के मुकाबले संतुलन बना सके और खासकर फारस की खाड़ी क्षेत्र में स्थिरता का स्रोत बन सके. असल में आधी सदी से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद इतिहास एक बार फिर भारत के पड़ोस में खुद को दोहरा रहा है, बल्कि अब यह पहले से ज्यादा गंभीर रूप में सामने आ रहा है और इसका कारण अमेरिका की लगातार बनी हुई शत्रुतापूर्ण नीति है. आज के दिन बांग्लादेश में भारत के खिलाफ भड़काऊ बयान दिया जा रहा है. इसमें अमेरिका से लेकर पाकिस्तान तक शामिल है. बांग्लदेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस अपने 'मास्टर्स' के मोहरा बने हुए हैं.
भारत का बढ़ता रसूख
1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम भारत के सैन्य इतिहास की सबसे बड़ी और सफल कार्रवाइयों में से एक माना जाता है. इस युद्ध ने न सिर्फ दक्षिण एशिया का राजनीतिक नक्शा बदल दिया, बल्कि भारत को एक मजबूत क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भी स्थापित किया. इस युद्ध से जुड़ी चर्चाओं में अक्सर राजनीतिक, सैन्य और खुफिया तंत्र से जुड़े कई बड़े नाम सामने आते हैं. लेकिन इस ऐतिहासिक घटना की दिशा तय करने में दो शख्स की भूमिका सबसे अहम रही - पहला R&AW के पूर्व चीफ आरएन काव और दूसरा फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ. मानेकशॉ को बाद में फील्ड मार्शल बनाया गया था. आरएन काव को उस वक्त ही पता चल गया था कि इंडियन सबकॉन्टिनेंट में अमेरिका का मंसूबा क्या है. इस बाबत उन्होंने सैम मानेकशॉ को अवगत भी कराया था और अपनी आशंका भी जाहिर की थी.
पूर्वी पाकिस्तान को लेकर आरएन काव की चेतावनी
अपने मजबूत नेटवर्क के कारण आरएन काव ने 1969 में ही यह अंदेशा जता दिया था कि पूर्वी पाकिस्तान में हालात तेजी से बिगड़ सकते हैं. एक खुफिया रिपोर्ट में उन्होंने कहा था कि वहां आंदोलन इतना मजबूत हो चुका है कि उसे दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना को बड़े पैमाने पर बल प्रयोग करना पड़ेगा. इससे हालात और बिगड़ेंगे और पूर्वी पाकिस्तान के लोग विद्रोह कर स्वतंत्रता की घोषणा भी कर सकते हैं. काव ने भारत सरकार को सलाह दी थी कि ऐसी स्थिति के लिए पहले से नीति तैयार रखी जाए. आरएन काव के नेतृत्व में R&AW ने बांग्लादेश की मुक्ति सेना (मुक्ति वाहिनी) को हरसंभव सहायता दी. R&AW ने करीब एक लाख लोगों को प्रशिक्षण दिया, ताकि वे पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के खिलाफ संघर्ष कर सकें. इस समर्थन ने धीरे-धीरे हालात को युद्ध की ओर धकेल दिया और आखिरकार भारत-पाकिस्तान के बीच तीसरा युद्ध हुआ.
आरएन काव- जासूसी के महारथी
भारत को 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में करारी हार का सामना करना पड़ा था. इस हार का एक बड़ा कारण यह माना गया कि भारत के पास चीन की गतिविधियों को लेकर पर्याप्त और समय पर खुफिया जानकारी नहीं थी. उस समय इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) ही देश की आंतरिक और बाहरी, दोनों तरह की खुफिया सूचनाओं का काम संभालता था. 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद यह कमी और साफ हो गई. तब यह महसूस किया गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक अलग और मजबूत विदेशी खुफिया एजेंसी का होना बेहद जरूरी है. इसी जरूरत को समझते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1968 में इंटेलिजेंस ब्यूरो का विभाजन कर रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी R&AW का गठन किया. R&AW की जिम्मेदारी आरएन काव को सौंपी गई, जो उस समय IB में डिप्टी डायरेक्टर थे. आरएन काव प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के करीबी माने जाते थे और अपनी तेज बुद्धि व सख्त कार्यशैली के लिए जाने जाते थे. उन्होंने शुरुआत में IB से चुने गए 250 अधिकारियों की एक छोटी लेकिन चुस्त टीम बनाई.
मोसाद-CIA सबसे संपर्क
आरएन काव की सबसे बड़ी ताकत उनका अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क था. संयुक्त खुफिया समिति के अध्यक्ष केएन दरूवाला के अनुसार, एशिया के कई देशों (जैसे अफगानिस्तान, ईरान, चीन) में उनके मजबूत संपर्क थे. वे सिर्फ एक फोन कॉल से कई काम करवा सकते थे. भारत में विभिन्न विभागों और सेनाओं के बीच मौजूद आपसी खींचतान के बावजूद, काव एक मजबूत टीम लीडर के रूप में काम करते थे. काव ने दूसरे देशों की खुफिया एजेंसियों के साथ अपने संबंधों का रणनीतिक इस्तेमाल करने की योजना बनाई. इज़राइल की मोसाद पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका से जुड़ी जानकारियों का जरिया बन सकती थी, जबकि सोवियत संघ की केजीबी हथियार और गोला-बारूद उपलब्ध करा सकती थी. अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA से भी RAW को मदद मिल सकती थी. 1962 के युद्ध के बाद CIA ने भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) को प्रशिक्षण दिया था.

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